जेट एयरवेज का संकट

अब तक जेट एयरवेज के सभी ऋणदाता स्टेट बैंक के नेतृत्व में इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) के तहत नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) के बाहर ग्राउंडेड एयरलाइंस से जुड़े इन्सॉल्वेंसी संकट के सामाधान व पुनर्जीवित करने के लिए सभी संभावित विकल्पों की खोज कर रहे थे। हालाँकि ये सभी प्रयास असफल होते दिख रहे हैं। आज के दिनांक में कर्मचारियों के वेतन, ऑपरेटिंग लेनदारों और ॠणदाताओं के बकाया सहित जेट एयरवेज का कुल कर्ज लगभग ₹ 15,000 करोड़ है। उम्मीद यह है कि यदि यह मामला एनसीएलटी में जाता है, तो ॠणदाताओं को उनके कुल देय ₹ 8,400 करोड़ में से बहुत थोड़ा ही रिकवर हो पाएगा ।

इस प्रक्रिया में, कुछ नियामक सम्बन्धी मामलों के कारण कुछ दिन पहले ही हिंदुजा समूह ने जेट एयरवेज में हिस्सेदारी खरीदने संबन्धित बातचीत रोकने का फैसला किया था। इसे देखकर एतिहाद एयरवेज ने भी संकटग्रस्त एयरलाइन में और अधिक पैसा लगाने से मना कर दिया है। इन दो कम्पनियों के सिवाय अभी तक कोई भी दूसरी कम्पनी जेट एयरवेज में रूचि नहीं ले रही है। इन परिस्थितियों के अंतर्गत जेट एयरवेज को लेकर कर्जदाताओं के पास बहुत ही सीमित विकल्प रह गए हैं।

ॠणदाताओं जेट एयरवेज के मामले को आईबीसी के तहत रीसाल्यूशन के लिए एनसीएलटी में लेकर जा चुके हैं। अब ऐसा लग रहा है कि जेट एयरवेज के लिए लगभग सारी संभावनाएं लगभग समाप्त हो गई हैं। अब कोई चमत्कार ही जेट एयरवेज को वापस आसमान में उड़ा सकता है और यह भी एक दूर का स्वप्न ही लग रहा है। हालाँकि 20 जून को जब एनसीएलटी ने जेट एयरवेज के मामले को आइबीसी के तहत निष्तारण के लिए स्वीकार कर इसे 90 दिनों में निष्तारित करने का निर्णय दिया उससे पहले ही शेयर मार्केट ने उम्मीद से एकदम अलग ही प्रतिक्रिया दिया। सिर्फ एक दिन में जेट एयरवेज के शेयरों की कीमत 27 रूपए से 122% बढ़कर 73.55 रूपए हो गई। यह अपने आप में सबको हैरान कर देने वाली घटना है। इसने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या शेयर मार्केट को ये लगता है कि एनसीएलटी में जेट एयरवेज को लेकर कुछ ऐसा होगा कि कम्पनी बच जाएगी और दुबारा उसकी जहाजें आसमान में उड़ने लगेंगी? ये एक ऐसा प्रश्न है जिसका कोई सीधा उत्तर नहीं है। कुछ तथ्यों को देखा जाए तो लगता है कि जेट एयरवेज को बचाने में ही ॠणदाताओं का लाभ है परन्तु जब ये तथ्य सामने आता है कि जेट एयरवेज की लगभग सारी उड़ानें दूसरी एयरलाइन्स को आवंटित कर दी गई हैं और देनदारी का स्तर इतना अधिक है कि उसे बचाने के किसी भी प्रयास की सफलता की संभावना कम ही है।

ॠणदाता यदि ये निर्णय लेते हैं कि वे कम्पनी की परिसम्पतियों को बेचने से जो मिलेगा उससे ही अपना ॠण वसूल करना है तो इस स्थिति में ॠणदाताओं को बहुत ज्यादा लाभ मिलने की संभावना नहीं है। इस प्रक्रिया में जो भी पैसा मिलेगा वो ॠण और अन्य देनदारियों की तुलना में इतना कम होगा कि ॠणदाताओं को जो मिलेगा वो बहुत ही कम होगा। इस स्थिति में परिसम्पतियों को बेचने के बदले कम्पनी का मालिकाना हक किसी निवेशक या निवेशक को देना पसन्द करेंगी (Upadhyay, 2019)। केवल इसी स्थिति में ॠण्दाताओं को बेहतर डील मिलने की संभावना है। संभवतः यही स्थिति जेट एयरवेज के जहाजों को भविष्य में दुबारा आसमान उड़ा दे! इस तर्क के आधार पर कहा जा सकता है कि ॠणदाता कम्पनी को समाप्त करने के बदले पुनर्जीवित करने की योजना पर काम करेंगी और शेयर मार्केट की प्रतिक्रिया भी इसी ओर इंगित करती है। परन्तु एक मजेदार तथ्य ये है कि किंगफिशर को लेकर उड्ड्यन क्षेत्र में जितनी बेचैनी थी उसका एक छोटा हिस्से के बराबर भी बेचैनी जेट एयरवेज को लेकर नहीं है। बाजार शायद उम्मीद कर रहा है कि जैसे भी हो जेट एयरवेज बचा ली जाएगी।

सभी मामलों में एनसीएलटी का बैंकरप्सी निष्तारण की प्रक्रिया लेनदारों के लिए हमेशा ही लाभकारी नहीं होती है। इस प्रक्रिया में लेनदारों को कितना मिलेगा यह कम्पनी के परिसम्पतियों और देनदारियों के अनुपात पर निर्भर होता है। जेट के मामले में ये अनुपात ॠणदाताओं के पक्ष में नहीं है और ॠणदाता इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं। यही कारण था कि ॠणदाता मामले को एनसीएलटी के बाहर ही सुलझा लेना चाहते थे। अभी तक के प्रकरण को देखते हुए उनके ट्रिब्यूनल जाने का निर्णय भी उनकी योजना का हिस्सा लगता है।

मामले को जब बाहर सुलझाने का प्रयास हो रहा था तब सिर्फ एक निवेशक ही सशर्त निवेश करने को तैयार था। उसकी शर्त थी कि उसे सेबी के शेयरधारकों से जुड़े कुछ नियमों से छूट मिले और वर्तमान नियमों के तहत यह छूट जेट एयरवेज के ॠणदाताओं के बिना ट्रिब्यूनल जाए संभव नहीं है। एनसीएलटी में जाने के बाद बिड करने वाले निवेशक को सार्वजनिक शेयरधारकों को खुले प्रस्ताव के सम्बन्ध में सेबी की छूट की सुविधा उपलब्ध होगी जो निवेशकों के लिए जेट एयरवेज की डील को थोड़ा बहुत आकर्षक बना देगा। यदि निवेशक एनसीएलटी में जाने के बाद एयरलाइन्स में निवेश करने को तैयार हो गए तो संभव है कि हिन्दुजा ग्रुप और अतिहाद एयरलाइन्स भी जेट एयरवेज में निवेश करने को इच्छूक हो जाएँ।

हालांकि इन परिस्तिथियों में सरकार को भी आगे बढ़कर सहायक साबित होना होगा। सरकार को ये बात समझना होगा कि कम्पनियों के बन्द होने से सिर्फ उनके शेयरधारकों को ही नहीं बल्कि पुरी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचता है (Dardac, Barbu, & Boitan, 2011)। संग ही ऐसी घटनाएँ बैंकिंग क्षेत्र के लिए भी बहुत नुकसानदायी होती हैं (Demertzis & Lehmann, 2017)। इसलिए सरकार को बिना किसी लेटलतीफी के जेट एयरलाइन्स को उसकी उड़ानें वापस लौटाना होगा। साथ ही कर्मचारियों और अन्य देनदारों की देनदारियों को लेकर भी एक मजबूत कार्ययोजना बनानी होगी।

डिफॉल्ट की घटनाओं में कम्पनियों की नीतियाँ, सरकार की उस क्षेत्र से संबन्धित नीति व आर्थिक परिस्थितियों को महत्त्वपूर्ण योगदान होता है (Upadhyay, 2018)। अतः यह आवश्यक है कि उड्डयन क्षेत्र का नियामक क्षेत्र से संबन्धित अन्य सभी निहित समस्याएं को सुलझाए तथा उन कारकों को ढूँढे जो डिफॉल्ट को प्रोत्साहित करते हैं ताकि भविष्य में किसी भी एयरलाइन को ऐसी समस्याओं का सामना न करना पड़े (Sharma, Singh, & Upadhyay, 2014)। हालाँकि फ्यूल टैरिफ को कम करने के संबन्ध में पहले ही निर्णय लिया जा चुका है परन्तु अन्य कई महत्त्वपूर्ण मुद्दों जैसे कि एयरपोर्ट पर लगने वाले विभिन्न शूल्कों को कम करने के दिशा में कार्य करने की नितान्त आवश्यकता है।
संदर्भ सूची:-
  • C. S. Sharma, R. K. Singh, & R. K. Upadhyay. (2014). Predicting Probability of Default. Primax International Journal of Commerce and Management Research, 5-13. 
  • M. Demertzis, & A. Lehmann. (2017). Tackling Europe’s crisis legacy: a comprehensive strategy for bad loans and debt restructuring. Policy Contribution, 1-15. 
  • N. Dardac, T. C. Barbu, & I. A. Boitan. (2011). Impact of Credit Restructuring on the Quality of Bank Asset Portfolio: A Cluster Analysis Approach. ACTA UNIVERSITATIS DANUBIUS. 
  • R. K. Upadhyay. (2018). Predicting Probability of Debt Default: A Study of Corporate Debt Market in India and other Countries (Doctoral Thesis). Delhi: University of Delhi.  
  • R. K. Upadhyay. (21 April 2019). Management and Regulators Failed Jet Airways. The Deliberation: https://www.deliberation.in/2019/04/management-and-regulator-failed-jet-airways-rajeev-upadhyay.html
राजीव उपाध्याय
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