Rajeev Upadhyay

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क्योंकि मैं रुक ना सकी मृत्यु के लिए

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क्योंकि मैं रुक ना सकी मृत्यु के लिए दयालुता से मगर इन्तजार उसने मेरा किया और रूकी जब  तो हम और अमरत्व बस रह गए। धीरे-धी...

चौकीदार

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संकरी गलियों से गुजरते हुए धीमे और सधे कदमों से लहरायी थी चौकीदार ने लालटेन अपनी  और कहा था , “सब कुछ ठीक है!" बैठी बंद जाल...

ग़रीबी

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आह! नहीं चाहती हो तुम कि डरी हुई हो  ग़रीबी से तुम; घिसे जूतों में नहीं जाना चाहती हो बाज़ार तुम और नहीं चाहती हो लौटना उसी पुराने...
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