आर्थिक गतिविधियां पूर्व-महामारी के स्तर पर वापस

आर्थिक गतिविधियों के लिए सूचकांक के साथ गतिशीलता, बिजली की खपत और श्रम भागीदारी जैसे उच्च आवृत्ति संकेतक बताते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था पूर्व-कोविद के स्तरों से लगभग सिर्फ 1.9% नीचे ही रह गई है। आर्थिक गतिविधियों में सुधार को देखते हुआ कहा जा सकता है अर्थव्यवस्था तेजी से रिकवरी के ट्रैक पर है। इन उच्च आवृत्ति वाले आर्थिक संकेतकों में पिछले छह महीने से अधिक समय से लगातार सुधार हो रहा है। PMI के साथ-साथ IIP भी ऊपर की ओर बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है परन्तु गतिशीलता और श्रम भागीदारी जैसे संकेतकों में अभी भी सुधार दर्ज नहीं किया जा रहा है। गतिशीलता और श्रम भागीदारी के संकेतकों को पूर्व-महामारी स्तरों को प्राप्त करने में अभी और समय लगेगा।

पूर्व-महामारी के स्तर की तुलना में गतिशीलता संकेतक अभी भी 10-15% कम हैं। हालाँकि लॉकडॉउन के प्रतिबन्धों में उत्तरोत्तर कमी आने के साथ गतिशीलता संकेतक समय के साथ बेहतर होते जाएंगे। परन्तु कोविड के विभिन्न उपभेदों के भारत में मिलने के कारण बढ़ने वाले जोखिमों पर भी बहुत कुछ निर्भर होगा। पूर्वी यूरोप में अनुभवों को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि अभी भी जोखिम अधिक है और अर्थव्यवस्था में समग्र भावनाओं को प्रभावित करेगा। परिणामस्वरूप, यह रोजगार के अवसरों और श्रम भागीदारी के साथ-साथ अर्थव्यवस्था में क्षमता के विस्तार पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालेगा।

मई 2020 के बाद से भारतीय अर्थव्यवस्था में निरंतर सुधार यह बताता है कि आत्मनिर्भर भारत पैकेज के साथ-साथ आरबीआई की मौद्रिक नीति का लचीला रुख अर्थव्यवस्था में मांग को पुनर्जीवित करने के साथ-साथ आपूर्ति श्रृंखला ठीक करने में सफल रहा है। आर्थिक गतिविधियों के पूर्व-महामारी के स्तर पर वापसी जीडीपी की तुलना अर्थव्यवस्था में रिकवरी को बेहतर तरीके से इंगित करता है। हालाँकि साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि महामारी से पहले भी आर्थिक मोर्चे पर स्थितियां बहुत उत्साहजनक नहीं थीं। भारतीय अर्थव्यवस्था अर्थव्यवस्था में सुस्ती, बैंकिंग और वित्तीय सेवा क्षेत्र में गड़बड़ी, जीएसटी के स्थिरीकरण और बढ़ते राजकोषीय घाटे जैसी समस्याओं से जूझ रही थी। इसलिए आवश्यक है कि सरकार बेहतर नीतिगत निर्णय ले क्योंकि अर्थव्यवस्था में उच्च मुद्रास्फीति का जोखिम लगातार बना रहेगा। 
राजीव उपाध्याय

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