मेरे घर का मेरा वो कोना
जो अब तुम्हारा हो चुका है
मुझमें तेरे होने की
वही कहानी कहता है
जो कभी माँ
पिताजी के साथ सुनती थी
और ईया बाबा को बताती थीं।
कुछ भी नया नहीं है;
ना झगड़ा
पीढ़ियों से हम वही बातें कहते आ रहे हैं
सफर
वही चलता जा रहा है
और लोग भी वही हैं
बस चेहरे बदलकर
कुछ की गुंजाइश ढूँढते हैं
जो आनेवाले कल की
इबारत उसी दीवार पर लिखते हैं।
शब्द भी एक ही हैं
बस पढनेवाला नहीं कोई।
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राजीव उपाध्याय
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना 26 जून 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
वाह! बहुत सुंदर।
ReplyDeleteवाह!!बहुत ही उम्दा !
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteबढ़िया लगा पढकर
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteगहरे भाव ... मन के संवेदना शब्दों में उतरी है ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
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