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परम्परा नकल की

किसी समय में उत्तर प्रदेश की महान परम्परा अनुसार नकल सम्पन्न व शक्तिशाली परिवारों का विशेषाधिकार हुआ करता था। बस कुछ मुट्ठी भर लोग ही नकल के विशेषाधिकार को प्रयोग कर पाते थे। वो तो धन्य हों माननीय मुलायम सिंह जी जिन्होंने नकल नामक महान क्रांतिकारी विचार का लोकतांत्रिकरण कर ना सिर्फ नकल को सर्व सुलभ बना दिया बल्कि भारतीय संविधान में वर्णित समानता के अधिकार की रक्षा कर भारतीय लोकतंत्र को शक्ति प्रदान की।

विक्टर ह्यूगो ने ऐसे ही थोड़े कहा था कि जिस चीज का समय आ जाता है उसे होने से कोई भी रोक नहीं सकता है।

मैं एक बहुत ही परम्परावादी व्यक्ति हूँ और सदैव ही प्रयास करता हूँ कि परम्पराएँ जीवित व संरक्षित रहें। लेकिन मैं परम्परावादी होने के साथ-साथ लोकतंत्रवादी भी हूँ। मेरी राय है कि परीक्षाओं से पहले पेपर के लीक होने से समाज में समानता के भाव में कमी आती है व पुराना विशेषाधिकार वाला भाव प्रभावी होता है। इस तरह यदि ये कहा जाए कि माननीय मुलायम सिंह का क्रांतिकारी विचार अब बुर्जुआ हो चुका है। सुना है कि हर क्रान्तिकारी विचार कुछ समय बाद बुर्जुआ हो ही जाता है।

रेट

पहला - 'तुम्हें कितना मिलेगा?'

दूसरा - 'तीन सौ।'

पहला - 'नया है क्या?'

दूसरा - 'हाँ। तुम्हें कितना मिलेगा?'

पहला - 'पाँच सौ।'

दूसरा -'ऐं! पाँच सौ?'

पहला -'हैरान क्यों हो रहा है? कुछ तो सिर्फ खाने पर आए हैं।'

यक्ष प्रश्न

यक्षः पुत्र! वर माँगो। क्या चाहिए तुम्हें? मैं तुम्हारी सारी मनोकामना पूर्ण करूँगा।

पेट्रोलः हे देव! मेरी बस एक ही इच्छा है कि इस राज्य में सदैव ही चुनाव होता रहे।

यक्षः क्यों पुत्र? ऐसा क्यों चाहते हो? चुनाव के कारण राज्य का समस्त क्रिया-कलाप ठप्प हो जाता है जो उचित नहीं है।

पेट्रोलः जब तक इस राज्य में चुनाव रहता है मेरा मूल्य स्थिर रहता है जिस कारण लोगों का मुझ पर प्रेम बना रहता है। आप तो जानते ही हैं कि प्रेम ही सबसे बड़ा सत्य व सनातन भाव है।

बच्चा का गच्चा

'बच्चा ने चच्चा को गच्चा दिया।'


प्रश्नः इस छंद में किस अलंकार व रस का प्रयोग हुआ है? व्याख्या सहित समझें।

नोटः हिन्दी के मॉट सा'ब लोग! आपको आपके क्लासरूम की कसम यदि कोई भाषाई त्रुटि हुई तो भूल-चूक माफ करते हुए सुधार कर पढ़ने की स्वंय पर कृपा करें।

विनीत
प्रश्नपत्र का सेटर

शब्दों के मायने

तुम जिन रिसालों के जानिब
दुनिया बदलना चाहते हो
तुम जानते नहीं शायद
कि लोग उनको अब पढते नहीं।

खबर तुमको नहीं ये भी शायद अब
कि शब्दों के मायने जो तुमने सीखा था कभी
वक्त की सडक़ पर घिसकर
मानी उनका अब कुछ और ही है हो गया!

दर्द दर्ज कर सकता नहीं

जानता हूँ
चुप रहने की सलाहियत
वो यूँ ही नहीं देते।

हर बार रोए हैं
वो लफ्जों की लकीरों पर
जिनकी मात्राओं में
ना जाने किस-किस की कहानी है।

डरी रहती है

वो रह रहकर पूछती रहती है
ठीक तो हूँ मैं?

बहुत डरी रहती है
किसी अंजाने भय से!
कई बार
वो खुद को भी भूल जाती है
मेरी ही चिन्ता में
जैसे बहुत जरूरी हूँ मैं दुनिया के लिए!

फ्रैक्चर, प्लॉस्टर और चुनाव

फ्रैक्चर, प्लॉस्टर और चुनाव Election
अभी मैं उहापोह की स्थिति में पेंडुलम की तरह डोल ही रहा था कि चच्चा हाँफते हुए कहीं चले जा रहे थे। देखकर लगा कि चिढ़े हुए हैं। जैसे उन्होंने कोई भदइला आम जेठ के महीने में खा लिए हों और जहर की तरह दाँत से ज्यादा मन एकदम ही खट्टा हो गया हो। जब मैंने उनकी गाड़ी को अपने स्टेशन पर रुकते नहीं देखा तो मैंने चच्चा को जोर से हॉर्न देते हुए बोला,

‘अरे चच्चा! कहाँ रफ्फू-चक्कर हुए फिर रहे हैं। पैर की चकरघिरन्नी को थोड़ी देर के लिए मेरे स्टॉप पर रोकिए तो सही! क्या पता कोई सवारी ही मिल जाए?’

चच्चा पहले तो गच्चा खा गए कि बोला किसने लेकिन जैसे ही उनकी याददाश्त वापस लौटी तो खखार कर बोले, ‘तुम हो बच्चा! मैं समझा कि कोई और बोल रहा है?’

कुछ टपकते हुए आधुनिक प्रमेय

अद्यतन एक बहुत सुखकर प्रक्रिया है। खासकर बुढ़े बुजुर्गों के लिए। भारत एक पुरानी सभ्यता है तो यहाँ सब कुछ ही बहुत पुराना हो गया है। मतलब बुर्जुआ टाइप का! इसलिए इस विषम समय में भारत को अपडेट करते रहना भी एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण कार्य है। समय की घिसावट से कुछ नए आधुनिक प्रमेय लार की तरह टपकते ही रहते हैं और उन प्रमेयों को स्पष्ट करते ही रहना चाहिए। तो इस प्रयोजन हेतु कुछ टपकते हुए आधुनिक प्रमेय:

1. एक अकेला क्रांतिकारी सात लठैतों के बराबर होता है। अतः अपनी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कम से कम आठ की संख्या में ही अप्रोच करें। - सूत्र 15/100 करोड़ वाया वारिस पठान

चोलबे ना

चच्चा खीस से एकमुस्त लाल-पीला हो भुनभुनाए जा रहे थे मगर बोल कुछ भी नहीं रहे थे। मतलब एकदम चुप्प! बहुत देर तक उनका भ्रमर गान सुनने के बाद जब मेरे अन्दर का कीड़ा कुलबुलाने लगा। अन्त में वो अदभुत परन्तु सुदर्शन कीड़ा थककर बाहर निकल ही पड़ा।

‘चच्चा! कुछ बोलोगे भी कि बस गाते ही रहोगे? मेरे कान में शहनाई बजने लगी है; पकड़कर शादी करा दूँगा आपकी अब!’

चच्चा हैरान होकर मेरी तरफ देखने लगे। जब मैंने एक बुद्धिजीवी की तरह प्रश्नात्मक मुद्रा में उनकी ओर देखा तो वो पूछे

‘मतलब तुमने सुन ही लिया जो मैं बोल रहा था?’

मैंने वापसी की बस पकड़कर बोला, ‘आपकी चीख सुनाई नहीं दी; बस सूँघा हूँ! अब बोल भी दीजिए नहीं तो बदहजमी हो जाएगी’

कि तुम्हारा ख़त मिला

डाकिए ने 
थाप दी हौले से 
आज दरवाजे पर मेरे 
कि तुम्हारा ख़त मिला। 

तुमने हाल सबके सुनाए 
ख़त-ए-मजमून में 
कुछ हाल तुमने ना मगर 
अपना सुनाया 
ना ही पूछा 
किस हाल में हूँ? 
कि तुम्हारा ख़त मिला। 

क्योंकि मैं रुक ना सकी मृत्यु के लिए

क्योंकि
मैं रुक ना सकी
मृत्यु के लिए
दयालुता से मगर
इन्तजार उसने मेरा किया
और रूकी जब 
तो हम और अमरत्व
बस रह गए।

धीरे-धीरे बढ़ चले 
सफर पर हम 
जल्दबाजी नहीं उसे। 
सब कुछ छोड़ दिया मैंने 
अपनी मेहनत और आराम भी। 
शिष्टता उसकी ऐसी थी!

चौकीदार

संकरी गलियों से गुजरते हुए
धीमे और सधे कदमों से
लहरायी थी चौकीदार ने लालटेन अपनी 
और कहा था , “सब कुछ ठीक है!"

बैठी बंद जाली के पीछे औरत एक
नहीं था पास जिसके बेचने को कुछ भी;
रुककर दरवाजे पर उसके 
चौकीदार चिल्लाया जोर से, “सब कुछ ठीक है!”

ग़रीबी

आह! नहीं चाहती हो तुम
कि डरी हुई हो 
ग़रीबी से तुम;
घिसे जूतों में नहीं जाना चाहती हो बाज़ार तुम
और नहीं चाहती हो लौटना उसी पुराने कपड़े में। 

मेरी प्रेयसी! पसन्द नहीं है हमें,
कि दिखें हमें उस हाल में, है जो पसंद कुबेरों को;
तंगहाली हमारी। 

राम को आईएसआई मार्का

राम को आईएसआई मार्का Ram Satireइस बार के दशहरा में वो हुआ जो कभी भी नहीं हुआ था। जिसका सपना लोग सत्तर साल से देख रहे थे वो इस बार ‘पहली बार’ हो ही गया। कहने का मतलब है कि कई सौ साल पर लगने वाले सूर्य और चन्द्र ग्रहण की तरह। हजारों सालों में पहली बार आनेवाली दैवीय मूहुर्त की दीपावली की रात की तरह। ये सब कुछ इस तरह से चमत्कारी तरीके से हुआ कि चमत्कार ने अपनी परिभाषा बदल ली है और हैरानी ने हैरान होने का पैमाना। इस बार के दशहरा अलकायदा के बम ब्लॉस्ट की तरह था जिसने भारत के संस्कृति और इतिहास का कायाकल्प ही कर के रख दिया है। इस सब को देखकर मूँगेरीलाल तक हैरान और परेशान हो सदमे में चले गए हैं कि उनके हसीन सपनों के पँख इतने कमजोर थे! खैर लाल बुझक्कड़ का समाचार इस तरह से है।

दोस्ती दुश्मनी का क्या?

दोस्ती दुश्मनी का क्या? 
कारोबार है ये। 
कभी सुबह कभी शाम 
तलबगार है ये॥ 

कि रिसालों से टपकती है ये 
कि कहानियों में बहती है ये। 
कभी सितमगर है ये 
और मददगार भी है ये॥

उसके कई तलबगार हुए

कभी हम सौदा-ए-बाज़ार हुए 
कभी हम आदमी बीमार हुए 
और जो रहा बाकी बचा-खुचा 
उसके कई तलबगार हुए॥ 

सितम भी यहाँ ढाए जाते हैं 
रहनुमाई की तरह 
पैर काबे में है 
और जिन्दगी कसाई की तरह॥

वो जगह

ढूँढ रहा हूँ जाने कब से 
धुँध में प्रकाश में 
कि सिरा कोई थाम लूँ 
जो लेकर मुझे उस ओर चले 
जाकर जिधर 
संशय सारे मिट जाते हैं 
और उत्तर हर सवाल का 
सांसों में बस जाते हैं। 

मेरी कहानी

तूफान कोई आकर 
क्षण में चला जाता है 
पर लग जाते हैं बरसों 
हमें समेटने में खुद को 
संभला ही नहीं कि बारिश कोई
जाती है घर ढहाकर।

सूर्ख शर्तें

कुछ चेहरे
बस चेहरे नहीं होते
सूर्ख शर्तें होती हैं हमारे होने की। 

कुछ बातें
बस बातें नहीं होतीं
वजह होती हैं हमारे होने की। 

और बेवजह भी बहुत कुछ होता है
जिनसे जुड़ी होती हैं
हमारी साँसें होने की।