ग़रीबी

आह! नहीं चाहती हो तुम
कि डरी हुई हो 
ग़रीबी से तुम;
घिसे जूतों में नहीं जाना चाहती हो बाज़ार तुम
और नहीं चाहती हो लौटना उसी पुराने कपड़े में। 

मेरी प्रेयसी! पसन्द नहीं है हमें,
कि दिखें हमें उस हाल में, है जो पसंद कुबेरों को;
तंगहाली हमारी। 

उखाड़ फेंकेंगे इस शूल को हम 
उस दुष्ट की तरह 
जो सालता है मनुज के हृदय को। 
मैं चाहता नहीं 
कि डरो तुम इससे;
और गलती कोई मेरी जो 
बुला के इसे घर में तुम्हारे 
और ये गरीबी छीन ले तुम्हारी सम्पदा 
फिर भी अपनी हँसी को कायम रखना 
कि जिन्दगी मेरी साँस पाती है उनसे। 

यदि दे ना सको किराया 
फिर भी जाना काम पर उठा कर सिर अपना 
और याद रखना मेरे प्रेम! 
कि मैं तुमको देख रहा हूँ 
और हम दोनों 
दुनिया की सबसे बड़ी दौलत हैं जो इस धरती पर कभी जमा हुई थी।
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पाब्लो नेरूदा
(अनुवाद - राजीव उपाध्याय)

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