परम्परा नकल की

किसी समय में उत्तर प्रदेश की महान परम्परा अनुसार नकल सम्पन्न व शक्तिशाली परिवारों का विशेषाधिकार हुआ करता था। बस कुछ मुट्ठी भर लोग ही नकल के विशेषाधिकार को प्रयोग कर पाते थे। वो तो धन्य हों माननीय मुलायम सिंह जी जिन्होंने नकल नामक महान क्रांतिकारी विचार का लोकतांत्रिकरण कर ना सिर्फ नकल को सर्व सुलभ बना दिया बल्कि भारतीय संविधान में वर्णित समानता के अधिकार की रक्षा कर भारतीय लोकतंत्र को शक्ति प्रदान की।

विक्टर ह्यूगो ने ऐसे ही थोड़े कहा था कि जिस चीज का समय आ जाता है उसे होने से कोई भी रोक नहीं सकता है।

मैं एक बहुत ही परम्परावादी व्यक्ति हूँ और सदैव ही प्रयास करता हूँ कि परम्पराएँ जीवित व संरक्षित रहें। लेकिन मैं परम्परावादी होने के साथ-साथ लोकतंत्रवादी भी हूँ। मेरी राय है कि परीक्षाओं से पहले पेपर के लीक होने से समाज में समानता के भाव में कमी आती है व पुराना विशेषाधिकार वाला भाव प्रभावी होता है। इस तरह यदि ये कहा जाए कि माननीय मुलायम सिंह का क्रांतिकारी विचार अब बुर्जुआ हो चुका है। सुना है कि हर क्रान्तिकारी विचार कुछ समय बाद बुर्जुआ हो ही जाता है।

अतः मेरी माँग है कि समस्त परीक्षाओं के पेपर एक सरकारी प्रेस रीलिज के द्वारा सार्वजनिक खर दिया जाए ताकि हर तरह से किसी भी असमानता की संभावना ही ना बचे!

हालाँकि इसमें एक खतरा भी है। नकल के लोकतांत्रिकरण का जो क्रान्तिकारी कार्य माननीय मुलायम सिंह जी ने किया था वो अतीत की बात हो जाएगी। एक विराट परम्परा मृत हो जाएगी। यह सोचकर ही मेरा परम्परावादी हृदय दुख के सागर में गोते लगा रहा है।

अब आप ही बताइए कि नकल की परम्परा बचाई जाए या समाप्त कर दिया जाए?

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