महँगाई, मॉनिटरी पॉलिसी व नीतिगत हस्तक्षेप

8 अप्रैल 2022 के रिजर्व बैंक की मॉनिटरी पॉलिसी कमेटी की मीटिंग के रीसाल्यूशन के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था में हेडलाइन सीपीआई मुद्रास्फीति (Headline CPI inflation) की दर जनवरी महीने में 6.0% तथा फरवरी महीने में 6.1% थी। हेडलाइन सीपीआई मुद्रास्फीति की दर का यह स्तर केन्द्रीय बैंक के अपेक्षित अधिकतम दर (Upper Tolerance Threshold) की तुलना में या तो अधिक या फिर बार्डर पर थी। इसी अवधि में अर्थव्यवस्था में कोर मुद्रास्फीति (Core inflation) की दर भी लगभग 6% के आसपास लगातार बनी रही। ऐसा नहीं है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में ऊँची मुद्रास्फीति की दर की स्थिति सिर्फ पिछले दो या तीन महीनों से बनी हुई है। बल्कि यह स्थिति कम से कम छः महीने से अधिक समय से बनी हई है। हालाँकि इस तथ्य का एक पक्ष ये भी है कि इस समय पूरी दुनिया ऊँची मुद्रास्फीति की स्थिति से परेशान है। पहले कोरोना वायरस महामारी एवं अब यूक्रेन-रूस युद्ध ने पूरी दुनिया के लिए आर्थिक परिदृश्य को बिगाड़ने का काम किया है तथा मुद्रास्फीति पर सीधे तौर नकारत्मक प्रभाव डाला है।

महँगाई सम्बन्धी भारतीय डॉटा से यह स्पष्ट है कि इस अवधि में खाद्य पदार्थों के मूल्यों में लगातार वृद्धि हुई है जिसके कारण पिछले कई महीनों से हेडलाइन सीपीआई मुद्रास्फीति की दर लगातार उपरी सीमा के आसपास या उससे अधिक बनी हई है। साथ ही यह भी एक तथ्य है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में पिछले दो सालों में पेट्रोलियम पदार्थों के मूल्य लगातार बढ़े हैं और पेट्रोलियम पदार्थों के बढ़ते मूल्य की चौतरफा मार पूरी अर्थव्यवस्था पर पड़ रही है। पेट्रोलियम पदार्थों का बढ़ता मूल्य ना सिर्फ यातायात के माध्यमों को खर्चीला बना रहा है बल्कि वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि का प्रमुख कारक बन रहा है। हालाँकि इसी तथ्य का एक दूसरा पक्ष ये भी है कि भारत में पिछले वित्तीय वर्ष में रिकॉर्ड अन्न का उत्पादन हुआ है फिर भी कई खाद्य पदार्थों (दलहन व तिलहन) की कमी की रिपोर्ट भी आती रही है।



मॉनिटरी पॉलिसी रिपोर्ट अप्रैल 2022 में विश्लेषित अर्थव्यवस्था के विभिन्न कारकों व संभावित प्रभावों को ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि आने वाले दिनों में भारतीय अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति की स्थिति में किसी भी तरह के गुणात्मक सुधार होने के कोई प्रभावी संकेत दिखाई नहीं दे रहे हैं। केन्द्र व राज्य सरकारें पेट्रोलियम पदार्थों से होने वाले कर संग्रह के मोह का त्याग करने के लिए तैयार नहीं हैं जो आने वाले दिनों के लिए एक अलग तरह की समस्या (राज्यों के आय का स्रोत) का कारण बनने की ओर बढ़ रहा है। साथ ही अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं को देखते हुए ये कहा जा सकता है कि निकट भविष्य में पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में किसी प्रभावी गिरावट की संभावना नहीं दिखाई दे रही है।

अतः इस बात की संभावना बहुत अधिक है कि आने वाले कई महीनों में हेडलाइन सीपीआई व कोर मुद्रास्फीति की दर अपेक्षित अधिकतम सीमा 6% के आसपास या उसके ऊपर बनी रहे। मुद्रास्फीति के लगातार ऊँचा रहने तथा रिजर्व बैंक द्वारा अर्थव्यवस्था में रिकवरी प्रक्रिया को मजबूत बनाए रखने के लिए ब्याज दरों को नीचे बनाए रखने के कारण इस बात की संभावना बढ़ रही है कि आने वाले महीनों में अर्थव्यवस्था को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

रिजर्व बैंक ब्याज दरों में कोई परिवर्तन ना करके ये स्पष्ट संकेत दे दिया है कि भी महँगाई उसकी प्राथमिकता में शामिल नहीं है। केन्द्र सरकार के द्वारा भी दिए जा रहे संकेतों के आधार पर यह कहा जा सकता है केन्द्र सरकार अभी पेट्रोलियम पदार्थों पर कर को घटाने के लिए इच्छुक नहीं है। यही स्थिति राज्य सरकारों का है। हालाँकि हाई फ्रीक्वेंसी इंडिकेटर्स के आधार पर यह कहा जा सकता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अपने बूरे दौर को पीछे छोड़कर आगे बढ़ गई है। किन्तु अनियंत्रित महँगाई की स्थिति में लोगों के खर्च करने की क्षमता घटनी निश्चित है जो अन्ततः अर्थव्यवस्था में सकल माँग में गिरावट का रूप में परिणित हो सकती है। परिणामतः अर्थव्यवस्था में आर्थिक गतिविधियों पर नकारात्मक प्रभाव के कारण जीएसटी का संग्रह नकारात्मक रुप से प्रभावित होगा और इस तरह केन्द्र व राज्य सरकारों का आय हेतु पेट्रोलियम पदार्थों पर निर्भरता पहले की तुलना में और अधिक बढ़ सकती है। यह विदित हो कि भारत उन कुछ देशों में शामिल है जहाँ पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें दुनिया में सबसे अधिक हैं।

राजीव उपाध्याय

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