शब्दों के मायने

तुम जिन रिसालों के जानिब
दुनिया बदलना चाहते हो
तुम जानते नहीं शायद
कि लोग उनको अब पढते नहीं।

खबर तुमको नहीं ये भी शायद अब
कि शब्दों के मायने जो तुमने सीखा था कभी
वक्त की सडक़ पर घिसकर
मानी उनका अब कुछ और ही है हो गया!

कहानियों ने जिन रास्तों को पाक बहुत बताया है
रहगुज़र जो भी गया है आग लगाकर उनमे गया है
अब मुंतज़िर कोई नहीं है फैसले देते सभी
कि गुनाह भी यहाँ शायद खुदा का रास्ता है!

फलसफों के फसाने जाल कुछ यूँ हैं बुनते
कि आदमी ना आदमी रहा कैद हैं जेलों में
कौन सी तहरीर बता हम दीवार पर लिखें?
कि तुम अपना कफस कब तोड दो?
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