क्या ईश्वर एक विचार है?

यदि धर्मों का नजदीकी इतिहास उठाकर देखा जाए तो हम पाएँगे कि दुनिया के हर धर्म में ईश्वर के प्रति डर और कृपा इन दो मानवीय भावों का बड़ा ही महत्त्व रहा है। परन्तु अधिकतर पुरातन धर्मों के पुराने इतिहास को उठाकर देखा जाए तो यह स्पष्ट हो जाता है कि अधिकतर पुराने धर्मों में कहीं ना कहीं डर ही आस्था की वजह रही है। हालाँकि जैन धर्म बहुत हद तक इसका अपवाद रहा। संभवतः जैन धर्म इन पुरातन धर्मों में नया हो। बुद्ध के आगमन ने ईश्वर नाम की संस्था के आचरण, व्यवहार और संस्कार आदि सब कुछ बदल कर रख दिया। धर्म में दया का महत्त्व बढ़ गया।

कुछ धर्मों में आज भी ईश्वर प्रति डर का बड़ा ही महत्त्व है। हालाँकि ये धर्म से अधिक धर्म के धंधे से ज्यादा जुड़ा है।

बुद्ध संभवतः पहले व्यक्ति थे (जिनका लिखित इतिहास है और इतिहास लेखन की पश्चिमी पद्धति उनको ऐतिहासिक व्यक्ति मानती है) जिन्होनें ईश्वर को क्षमाशील, कृपालु, दयावान और प्रेम आदि का प्रतीक बताया। सवाल ये है कि अगर ईश्वर शाश्वत है तो ईश्वर की छवि समय के साथ कैसे बदल सकती है? और यदि ईश्वर की छवि बदल सकती है तो क्या ईश्वर एक विचार है जिसमें अनेक त्रुटियाँ हैं? और ये विचार समय के साथ बेहतर होता जा रहा है? 

हालाँकि राम और कृष्ण के अस्तित्व को स्वीकार करने के साथ ही ये सवाल संदर्श और संदर्भहीन हो जाता है क्योंकि राम और कृष्ण का अस्तित्त्व किसी भी पुराने धर्म से बहुत पुराना है।

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