धीमा किन्तु मजबूत कदम

पिछली जुलाई में जब नवनिर्वाचित सरकार ने पिछली सरकार निर्णय को बदलते हुए विश्व व्यापार संगठन के व्यापार सरलीकरण समझौता को स्वीकार करने से मना किया तो पुरी दुनिया स्तब्ध रह गयी थी। आर्थिक विशेषज्ञ, विकसित देश व अंतराष्ट्रीय संगठनों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी थी और उन दिनों में भारत की आर्थिक संदर्भों में भावी अंतराष्ट्रीय भूमिका संदिग्ध मानी जा रही थी। तब लगभग एकमत राय थी कि भारत द्वारा लिये गये इस फैसले से इसके अंतराष्ट्रीय भूमिका और हितों पर नकारात्मक असर पड़ेगा लेकिन जब हम आज पीछे मुड़कर देखते हैं तो स्पष्ट हो जाता है कि वो फैसला भारत के लिए लाभकारी साबित हुआ और पुरी दुनिया की राय भारत को लेकर सकारात्मक हुई है। परन्तु ये यूँ ही नहीं हुआ है। इसके पीछे सरकार द्वारा घरेलू स्तर पर लिए गये निर्णय और कार्यवाहियों का योगदान है।

जब सरकार ने विश्व व्यापार संगठन के व्यापार सरलीकरण समझौता के विरुद्ध जाने का निर्णय लिया तब वो समय था जब सरकार निर्णय ना लेने के लिए प्रसिद्ध थी। पूरा का पूरा सरकारी तंत्र भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता से चरमराया हुआ था। चारों ओर नकारात्मक वातावरण बन गया था। साथ ही 3 जी स्पेक्ट्रम घोटालों की वजह से एक तेजी से साथ उभरता हुआ दूरसंचार क्षेत्र दिशाविहीन हो भटका हुआ था। उसी समय सर्वोच्च न्यायालय ने कोयला खदानों के आवंटन को रद्द कर दिया था। इस स्थिति ने पूरे खदान व बिजली उद्योग के अंदर निराशा भाव पैदा कर दिया था। देश में उर्जा संकट की संभावनाएं व्यक्त की जाने लगीं। अभी इतना ही नहीं काफी था कि न्यायालय ने दिल्ली में ई-रिक्शा के संचालन पर रोक लगा जिससे हजारों लोग देखते-देखते बेरोजगार हो गये और धरना प्रदर्शन करने लगे। महंगाई अपने चरम पर थी तो बहुत उँचे ब्याज दरों के कारण निजी संस्थान उद्योगों में निवेश करने से कतरा रहे थे। बेरोजगारी की स्थिति भी बहुत सकारात्मक नहीं थी। तो वहीं भारतीय बाजार चीनी सामानों से पटा हुआ था। श्रम और भूमि कानूनों में सुधार की माँग की जा रही थी जो किसी भी सरकार के लिए बहुत ही मुश्किल निर्णय होता है। इन सारी परिस्थितियों के मद्देनजर विशेषतया पूरा उद्योग जगत और आम लोगों में निराशा ने घर कर लिया था। साथ ही लचर विदेश नीति के कारण अंतराष्ट्रीय स्तर भारत कमजोर हुआ था। पड़ोसी देशों जैसे कि म्यांमार, नेपाल, भुटान, श्रीलंका और मालदीव से साथ संबन्धों में वो मिठास नहीं रह गयी थी जो कभी पहले हुआ करती थी। ऐसी परिस्थितियाँ किसी भी सरकार के लिए बहुत ही कठिन हुआ करती हैं।। किसी भी समाज या राष्ट्र का निराशा के दौर से गुजरना उसके लिए सामान्यतः घातक होता है। इस तरह से सरकार के सामने घरेलू और बाहरी दोनों ही मोर्चों पर अनेक चुनौतियाँ थीं। इन्ही परिस्थितियों के बीच वर्तमान सरकार वायदों और उम्मीदों के घोड़े पर सवार होकर दिल्ली आयी थी जिसके पास हालात बदलने की चुनौती थी; तो कुछ कठिन निर्णय लेना था और उनको अमल में भी ले आना था।

किसी भी राष्ट्र के नेतृत्व के ये बहुत ही महत्त्वपूर्ण है कि वो अपने जनमानस को समझे और आवश्यक कदम उठाते हुये माहौल को सकारात्मक बनाये। आज वैश्विक समय में किसी भी राष्ट्र की अर्थ, विदेश और सैन्य नीति एक दूसरे की पूरक होती हैं। जब ये तीनों की तीनों नीतियाँ एक ही दिशा में अग्रसरित एक दूसरे की पूरक साबित होती हैं तो परिणाम सुखद होता है। संभवतः भारत की नयी चुनी हुई सरकार इसके महत्त्व को समझ रही थी। देश के प्रधानमंत्री ने सबसे पहले विदेश नीति को आर्थिक और सैन्य नीति के साथ एकरस करते हुए पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को ठीक करने का प्रयास शुरू किया जो दुनिया अन्य देशों तक जा पहुँचा और शीघ्र ही उसके सकारात्मक परिणाम मिलने भी शुरू हो गये। कुछ ही समय में देश में सकारात्मक माहौल बनना शुरू हो गया। ये किसी भी नयी चुनी हुई सरकार के लिए सुखद परिणाम कहा जा सकता है। हालाँकि जिस तरह से विदेश नीति के मामले में भारत को सरकार बदलते ही लाभ मिलना शुरू हो गया उससे स्पष्ट है कि भारत ने इस पहले से ही बहुत निवेश कर रखा था और भारत में संभावनाएँ और अंतर्निहित शक्तियाँ पहले से ही थीं। सरकारें उनको सही तरीके से प्रयोग नहीं कर रही थीं। क्योंकि एक साल का समय कम से कम विदेश नीति के मामले में किसी भी परिणाम की अपेक्षा रखने के लिए बहुत ही छोटी अवधि होती है।

चुनावों के बाद महंगाई का बढ जाना के पूरी दुनिया के लिए एक आम घटना है और पूर्व में भारत भी इस तरह की घटनाओं का साक्षी रहा है। सो सरकार के पास सबसे पहली चुनौती थी महंगाई पर काबू पाना और साथ ही ये सुनिश्चित करना की महंगाई कम करने के चक्कर में उद्योगों को नुकसान ना हो। केन्द्र सरकार ने प्राथमिकता तय करते हुए विभिन्न निर्णयों व माध्यमों के द्वारा महंगाई को बढने से रोका। महंगाई कम करने के लिए रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों को उँचा रखा तो सरकार ने जमाखोरी रोकने के लिए कार्यवाही की। परिणाम ये हुआ हुआ कि सरकार और रिजर्व बैंक दोनों ने मिलकर ना केवल महंगाई को नियंत्रित किया बल्कि महंगाई कम भी हुई। इसी समय एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा था भारत अंतराष्ट्रीय स्तर पर कृषि हितों का था। सरकार ने अंतराष्ट्रीय दबावों को दरकिनार करते हुए भारत के हितों पर नकारात्मक असर डालने वाले विश्व व्यापार संगठन के व्यापार सरलीकरण समझौता को अस्वीकार कर भारतीय हितों का ख्याल रखने वाले समझौते को लागू कराने में सफलता प्राप्त की जो अंततः भारत के लिए विकासशील और गरीब देशों में पैठ बनाने में महत्त्वपूर्ण टूल बना (Upadhyay, 2014)।

उसके बाद सरकार ने दूरसंचार उद्योग के फैली निराशा को दूर करने के लिए दूर संचार नीति को दुरुस्त किया और 3 जी स्पेक्ट्रम नीलामी को पारदर्शी तरीके से करने में सफल रही। 3 जी स्पेक्ट्रम नीलामी की सफलता दूरसंचार उद्योग में उत्साह भरने का काम किया। इसी दौरान सरकार सिर्फ तीन महीने के अंदर कोयला खदानों के नीलामी हेतु नई नीति बनाने में ना केवल सफल रही (Bhashkar, 2015) बल्कि पारदर्शी तरीके से कोयला ब्लाकों का नीलामी भी सफलतापूर्वक संपन्न कर संभावित उर्जा संकट को टालने में सरकार सफल रही (Kaul, 2014)। दूरसंचार और कोयला खदान नीति में जितनी तेजी और पारदर्शी तरीके से काम हुआ उसने पूरी दुनिया ध्यान अपनी ओर खींचा और अंतराष्ट्रीय निवेशकों में ये भरोसा जगाया कि अगर भारत सरकार काम करना चाहेगी तो अफसरशाही परिणाम देने के लिए तैयार है। साथ ही जनधन योजना के साथ समावेशी आर्थिक ढाँचा खड़ा करने का सरकार का प्रयास सफल रहा और तकरीबन 10 करोड़ लोगों के खाता खोला। यदि सही और पारदर्शी तरीके से काम किया गया तो ये खाते भविष्य में बहुत बड़े परिवर्तन के सुत्रधार बन सकते हैं।

सरकार इस बात को लेकर स्पष्ट है कि यदि विकास की गति को बढ़ाना है तो भारत को उत्पादन के क्षेत्र में भी अग्रणी बनना होगा और इस क्षेत्र में चीन भारत का सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी है; देश के अंदर और बाहर भी। इस प्रतिद्वंदी से निपटने के लिए आवश्यक है भारत उत्पादन के क्षेत्र में भी प्रतिस्पर्धा कर सके। इस बात को ध्यान में रखते हुए सरकार ने ‘मेड इन इंडिया’ नाम की योजना शुरू की है जिससे की भारत उत्पादन के क्षेत्र में भी अग्रणी हो सके। परन्तु बिना आधारभूत ढाँचे को खड़ा किये ना तो उत्पादन के क्षेत्र में अग्रणी हुआ जा सकता है और ना ही विकास की रफ्तार को बढ़ाया जा सकता है। अतः इस बात ध्यान रखते हुए सरकार ने बजट में आधारभूत ढाँचे के विकास के लिए बहुत बड़ा धन आवंटित किया है और उसके परिणाम भी दिखाई दे रहा। आज प्रतिदिन 10 किलोमीटर से अधिक की लंबाई का राष्ट्रीय राजमार्ग बन कर तैयार हो रहा है जो एक साल पहले तक औसतन 3 किलोमीटर तक था। इसी तरह से अन्य आधारभूत संरचनाओं पर तेजी के साथ काम हो रहा है। इन सभी कार्यों व नीतिगत निर्णयों का परिणाम ये है कि वित्तीय वर्ष 2014-15 में पिछ्ले वित्तीय वर्ष की तुलना में 50% से अधिक नेट विदेशी निवेश भारत में आया है (Nomura, 2015)। हालाँकि इसकेंएट विदेशी निवेश में इतने उछाल में सरकार द्वारा कई क्षेत्रों में विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाने जैसे नीतिगत निर्णयों का विशेष योगदान है।

इसी तरह से अन्य नीतिगत क्षेत्रों जैसे जीएसटी व सैन्य एवं सुरक्षा उत्पादन में भी सरकार ने काम किया है जिनका परिणाम आना बाकी है परन्तु सुधारों के नाम सरकार ने जाने-अनजाने कुछ गलतियाँ भी की हैं जिनसे बचा जा सकता था। श्रम एवं भूमि सुधार आज समय की माँग है परन्तु ये सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है कि ये सुधार आम जनता के हितों के साथ समझौता ना करते हों लेकिन सरकार इन दो मुद्दों कुछ गलतियाँ कर बैठी। मुख्यतया भूमि सुधार के मामले को इतना तूल नहीं देना चाहिए था क्योंकि नियम किसानों के हितों के साथ समझौता करते नजर आ रहे हैं।

Bibliography:-

  • Bhashkar, U. (2015, March 9). Coal block auction bids cross Rs1.5 trillion. Retrieved from Mint: https://www.livemint.com/Politics/xzmEfJHP67CcKdiPYsJryK/Coal-block-auction-bids-cross-Rs-15-trillion.html 
  • Kaul, V. (2014, September 26). Side effects of SC's coal block verdict: 6 issues the govt will have to solve quickly . Retrieved from Firstpost: https://www.firstpost.com/business/economy/side-effects-of-scs-coal-block-verdict-6-issues-the-govt-will-have-to-solve-quickly-2011919.html 
  • Nomura. (2015, May 27). Net FDI inflows touch record high of $34.9 bn in 2014-15. Retrieved from Mint: https://www.livemint.com/Money/9VWjOBNzUu60rCWdp8RxqM/Net-FDI-inflows-touch-record-high-of-349-bn-in-201415.html 
  • Upadhyay, R. (2014, August 25). Has India done it Right by not Ratifying WTO’s TFA? Retrieved from The Deliberation: https://www.deliberation.in/2014/08/has-india-done-it-right-by-not.html
- राजीव उपाध्याय

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