अर्थ डे के लिए

आप प्रगतिशीलता के पक्षधर बनकर चाहे जितने सेमीनार, सभा, नुक्कड़ नाटक, वैज्ञानिक शोध या चाहे जो जी में आए करिए कोई रोकेगा नहीं परन्तु आपके इन प्रयासों से तब तक होने वाला कुछ नहीं है जब तक कि आप प्रकृति के साहचर्य में जीना प्रारम्भ नहीं करते और इसके लिए अंततः आपको उसी भारतीय जीवन पद्धति को अपनाना पड़ेगा जिसे आप गालियाँ दे-देकर गलत बताते नहीं थकते। आज मराठावाड़ा और बूँदेलखण्ड सूखे के चपेट में हैं। कल बघेलखण्ड, पश्चिम उत्तरप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, आन्ध्रा और कर्नाटक भी मराठावाड़ा और बूँदेलखण्ड का साथ निभाएंगे।

विज्ञान की अपनी सीमाएँ हैं और प्रकृति का उन सीमाओं से कुछ लेना देना नहीं है। उसे तो सामंजस्य बैठना है और बैठा रही है और बैठाती रहेगी। और हम भिखारी अपने आप को राजा समझकर प्रकृति को गुलाम समझ रहे हैं पर ऐसा बहुत दिन तक चलनेवाला नहीं है। वक्त आ गया है कि आप अपने घर का एसी और रूम हीटर बन्द कर दें, ओवन के बदले गैस के चूल्हे से काम चलाएं, हो सके तो पैदल नहीं तो बाजार साइकिल से जाएं, मैट्रो पैदल ही जाएं। इस तरह से आप किफायती हो रहे हैं पैसे को लेकर नहीं बल्कि अपनी सांसों और आनेवाली पीढ़ियों की सांसों के लिए।

और हाँ यदि हो सके तो कुछ मिथकों पर भी यकीन करिए नहीं तो मनु के प्रलय, बाइबिल और कुरान की बाढ़ में आप और हम तैरते नजर आएंगे। यही बहुत होगा आज के अर्थ डे के लिए।

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