अब फिर से रोना-धोना होगा

आखिरकार बुद्धिजीवी अब अपने-अपने घरों से बाहर निकलने लगे हैं। सारे के सारे कश्मीर और कश्मीरियों की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। उन्हें लग रहा है कि इस देश में कश्मीरी सुरक्षित नहीं हैं। कुछ छिटपुट घटनाओं को सार्वभौमिक बताकर पूरे देश को ही कटघरे में खडा किया जा रहा है। कुछ मानवाधिकारों का रोना रो रहे हैं तो कुछ शांति का पाठ पढा रहे हैं। कुछ को इन शहीदों में भी हिंदू-मुस्लिम भी दिखाई देने लगा है। जाति के लिए रोने वाले भी इस दुर्घटना को मनुवादी सिद्ध करने का प्रयास कर रहे हैं। जबकि इनमें से अधिकतर के मुँह से इस त्रासदी और आतंकीवादियों के विरूद्ध एक शब्द भी बाहर नहीं निकला। हाँ इनमे से कुछ ने दो रोटी अधिक जरूर खाई होगी। 
  • ये बार बार कश्मीर, कश्मीरी और कश्मीरियत की बात कर रहे हैं और करते रहे हैं। पर इनके कश्मीर, कश्मीरी और कश्मीरियत में कश्मीरी पंडितों का कभी भूला जिक्र भी नहीं होता। 
  • ये आतंकवादियों और उनके चाहने वालों के मानवाधिकारों की चिंता में दुबले हुए जाते हैं पर आतंकी हमलों में मारे गए लोगों और सुरक्षाकर्मियों के संबंध में ये कभी सपने में भी चिंतित नहीं होते हैं। 
  • ये सवाल कर रहे हैं कि सोशल मीडिया पर लिखने से क्या होता है? यहाँ तो सब कुछ आभासी और फर्जी है परन्तु यहीं लिखी कुछ पोस्टों से इनका जीवन और लोकतंत्र दोनों ही खतरों में आ जाता हे। 
  • कुछ कहते हैं ये सही समय नहीं है बौद्धिक विमर्श का। दस दिन बाद जब सब लोग पुलवामा भूल जाएंगे तब बौद्धिक विमर्श हो सकता है। कुछ को लग रहा है कि अभी तक भारतीयों का बौद्धिक विकास ही नहीं हुआ है कि उनसे विमर्श किया जाए। जबकि इनके विमर्श का मतलब है एक खास खाँचे में बंद होकर वाह-वाह करना। 
  • कुछ विद्वानों के अनुसार तो सोशल मीडिया ही फर्जी राष्ट्रवाद का जनक है जबकि कभी ये ही लोग अरब स्प्रिंग की बात करते नहीं थकते थे। 
  • कुछ ने तो पुलवामा के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शन को ही गलत बता रहे हैं। इनको लगता है कि इससे देश में एक खास तरह का Chauvinism को बढावा मिलता है। इन प्रदर्शनों को गलत बताने के लिए तरह-तरह के उदाहरण ढुँढकर लेजी लेबलिंग की जा रही है। जबकि सत्य ये है कि इन्हें Chauvinism से परेशानी नहीं है। कभी थी ही नहीं। बल्कि ये इसके पुराने पोषक हैं। बस ये Chauvinism इनके बनाए खाँचे में फिट बैठना चाहिए भले ही वो लोकतांत्रिक और संवैधानिक मूल्यों को चीन की तरह चुनौती ही क्यों ना देता हो? 
  • नक्सली और भारत तेरे टुकड़े वाला गैंग इनके लिए प्रगतिशील और ये आतंकी क्रांतिकारी हैं और जो भी इनका विरोध करता है वो असहिष्णु और संभावित भगवा आतंकी है। और ये इसलिए है कि हमने चुप्पियों को गहना बना लिया और भूल गए हैं मुखर होना। पर भारत को भारत बनाए रखने के लिए आवाज लगानी होगी। 

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