आत्मनिर्भर भारत एवं भारत में उत्पादन

कोरोना वायरस जनित महामारी के कारण भारत सहित दुनिया की सभी अर्थव्यवस्थाओं की आर्थिक गतिविधियों में अभूतपूर्व गिरावट दर्ज की गई है। दुनिया में महामारी को शुरू हुए छः महीने से अधिक समय गुजर चुका है परन्तु दुनिया का आर्थिक भविष्य अभी भी अनिश्चितताओं से भरा है। हालांकि दुनिया की अधिकतर अर्थव्यवस्थाओं में आर्थिक गतिविधियाँ धीरे-धीरे बढ़ रही हैं लेकिन ये कह पाना बहुत मुश्किल है कि आर्थिक गतिविधियाँ पटरी पर कब तक वापस लौट पाएँगी?

भारतीय अर्थव्यवस्था आजादी के बाद अपने सबसे बूरे दौर से गुजर रही है। महामारी के पहले ही अर्थव्यवस्था संकटकाल से गुजर रही थी। देश में आर्थिक गतिविधियाँ एवं सकल घरेलू उत्पाद पिछले अवधि की तुलना में गिरावट आ रही थी और बेरोजगारी बढ़कर रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गई थी। इस महामारी ने समस्याओं को और चुनौतीपूर्ण बना दिया है। इस चुनौतीपूर्ण समय में भारतीय अर्थव्यवस्था के पास आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने के सिवाय कोई दूसरा रास्ता नहीं है। इससे ना केवल रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे बल्कि कर्जदारों द्वारा संभावित डिफॉल्ट घटनाओं में भी कमी आएगी। इन्हीं उद्देश्यों को ध्यान में रखकर सरकार ने ‘आत्मनिर्भर भारत’ योजना के तहत देश में विनिर्माण की गतिविधियों को बढ़ावा देने के निर्यण लिया है। लेकिन इस योजना के तहत बहुत ही आसान शर्तों पर उपलब्ध कराए जा रहे लोन एवं रिजर्व बैंक द्वारा बैंक लोन पर दिए गए मोराटोरियम के कारण संभावना है कि कुछ समय बाद बैंकिंस सिस्टम को विकराल एनपीए रूपी समस्या का सामना करना पड़ेगा।

चीनी उत्पादों पर निर्भरता कम करने एवं 101 सैन्य सामानों के आयात पर रोक लगाकर सरकार ने अपना स्टैंड स्पष्ट कर दिया है। हालांकि सरकार ने आयात पर निर्भरता कम करने एवं देश में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए ‘मेक इन इंडिया’ एवं ‘मुद्रा योजना’ की शुरूआत सालों पहले किया था परन्तु ये योजनाएँ बहुत प्रभावकारी साबित नहीं हुई हैं। इन परिस्थितियों में ये प्रश्न बहुत महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि क्या भारत विनिर्माण की गतिविधियों में आत्मनिर्भर बन पाने में सक्षम है? इस प्रश्न का कोई एक एवं सीधा उत्तर नहीं है। परन्तु ये स्पष्ट होना चाहिए कि दुनिया का कोई भी देश हर वस्तु के उत्पादन में आत्मनिर्भर नहीं हो सकता है। प्रकृतिक संसाधनों के असमान वितरण के कारण हर देश को दूसरे देशों पर निर्भर रहना ही पड़ता है। कई आर्थिक कारणों से ये निर्भरता उचित भी है।

भारत अपनी जरुरत की अधिकतर निम्न प्रौद्योगिकी की वस्तुओं का उत्पादन लगभग स्वयं ही करता है परन्तु उच्च प्रौद्योगिकी वाले उत्पादों एवं सैन्य सामानों के मामले में भारत पूरी तरह से आयात पर निर्भर है। मोबाइल फोन, कम्प्यूटर, अन्य इलेक्ट्रानिक सामान, सोलर पैनल, टेलिकॉम इक्विपमेंट व दवाइयों के एपीआई इत्यादि के लिए भारत पूरी तरह से चीन, दक्षिण कोरिया व ताइवान जैसे देशों पर निर्भर है। प्राकृतिक तेल, कोयला एवं खनिज के अलावा भारत वनस्पति तेल, कपड़े, उर्वरक, मशीनरी, विभिन रासायानिक व प्लास्टिक उत्पाद एवं यातायात सम्बंधी सामानों के आयात पर निर्भर है। सरकार को इन क्षेत्रों में विशेष हस्तक्षेप कर विनिर्माण की गतिविधियों को देश में बढ़ावा देना चाहिए।

उच्च तकनीकी उत्पादों के मूल में शोध एवं अनुसंधान गतिविधियाँ व बौद्धिक संपदा संरक्षण होता है। आज भारत में हर साल लाखों युवाओं को इंजीनियरिंग और पीएचडी की डिग्री अवार्ड होती हैं परन्तु कई सर्वेक्षणों में स्पष्ट हुआ है कि शोध एवं अनुसंधान के मामले में भारत चीन और अमेरीका से कोसों दूर है। चीन और अमेरीका अकेले दुनिया कुल पेटेंट आवेदन का 80 प्रतिशत से अधिक आवेदन करते हैं। वैसे ही बौद्धिक संपदा के संरक्षण के लिए भारत को और अधिक सुरक्षित बनाने की आवश्यकता है। 2009 से 2019 के बीच भारत ने पेटेंट के सिर्फ 25 हजार आवेदन किया जिसमें से सिर्फ 5 हजार ही सफल रहे। शोध एवं अनुसंधान के लिए सरकार को इस मद में अधिक खर्च करना होगा। वैसे ही बौद्धिक संपदा के संरक्षण के लिए भारत को और अधिक सुरक्षित बनाने की आवश्यकता है।

हर तरह के उत्पादों (उच्च एवं निम्न तकनीकी) के विनिर्माण के लिए पूरे देश में कुछ मूलभूत संरचनात्मक ढाँचों को होना आवश्यक है। उन संरचनाओं में बिजली, जल एवं यातायात संबन्धी संरचनाएँ महत्त्वपूर्ण हैं। अब तक भारत एसईजेड के द्वारा देश के कुछ विशेष क्षेत्रों में सुविधा जुटाने का काम करता रहा है जो प्रभावी भी रहा है परन्तु इस नीति से विनिर्माण गतिविधियों पर एक सीमित एवं पक्षपाती प्रभाव पड़ता है। इसलिए आवश्यक है कि ये संरचनात्मक सुविधाएँ देश के सभी हिस्सों में उपलब्ध हों। सरकार ने ‘एक जिला, एक उत्पाद’ की नीति को बढ़ावा दे रही है जो उचित भी है परन्तु आवश्यक है ये नीति आवश्यक संरचनाओं एवं इकोसिस्टम के विकास पर ध्यान दे।

वित्तीय वर्ष 2019-20 के अप्रैल-जून की तिमाही में भारत ने कुल $81.08 बिलियन मूल्य के उत्पादों का निर्यात किया तो वहीं कुल $127.04 बिलियन मूल्य के उत्पादों का आयात किया। इस तरह भारत उस तिमाही में कुल $45.96 बिलियन का व्यापार धाटा हुआ। यह व्यापार घाटा बहुत बड़ा है। हाँलाकि सेवाओं में भारत आयात की तुलना में निर्यात ज्यादा करता है परन्तु सेवाओं से तुलना में अधिक मूल्य की विनिर्मित वस्तुओं का निर्यात करता है। इसलिए ये मान लेना कि भारत विनिर्माण का काम ना के बराबर होता है उचित नहीं है।

आज देश के सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण (उत्पादन) क्षेत्र का कुल योगदान 16 प्रतिशत से थोड़ा अधिक है परन्तु यह योगदान दशकों से लगातार गिर रहा है और सेवाओं का योगदान बढ़ रहा है। इससे स्पष्ट है कि भारत में सरकार एवं उद्योग जगत द्वारा विनिर्माण की गतिविधियों पर पर्याप्त ध्यान नहीं गया एवं इस कारण देश में विनिर्माण के लिए आवश्यक इकोसिस्टम नहीं बन पाया। पीपीई किट्स एवं विंटिलेटर के लिए भारत पूरी तरह से आयात पर निर्भर था परन्तु कोरोना वायरस महामारी के दौरान कुछ ही महीनों में भारत पीपीई किट्स एवं विंटिलेटर के उत्पादन में ना सिर्फ आत्मनिर्भर हो गया बल्कि दुनिया निर्यात भी करने लगा है। इससे स्पष्ट है यदि सरकार उचित इकोसिस्टम उपलब्ध कराए तो भारत भी विनिर्माण के क्षेत्र में ना सिर्फ महत्त्वपूर्ण वृद्धि दर्ज कर सकता है बल्कि आत्मनिर्भर भी बन सकता है।

राजीव उपाध्याय

डॉउनलोड डॉक्यूमेंट:- आत्मनिर्भर भारत एवं भारत में उत्पादन



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