प्रश्न पूछना व उनके उत्तर ढ़ूढ़ना एक नागरिक का अनिवार्य दायित्त्व है। किन्तु साथ ही ये भी आवश्यक है कि उचित प्रश्न पूछा जाए ताकि एक सही व उपजाऊ विमर्श की स्थिति बन सके।
भारत व दुनिया में आने वाली संभावित मंदी को लेकर तरह-तरह के प्रश्न पूछे जा रहे हैं और ठीक व उचित भी है। हर समझदार व्यक्ति का चिन्तित होना स्वभाविक है। किन्तु अनेकों लोगों के द्वारा कुछ ऐसे भी प्रश्न पूछा जा रहा है जिनका कोई मतलब नहीं है।
पिछले कुछ समय से भारतीय रूपए का मूल्य डॉलर की तुलना में लगातार गिरा है और यह एक कटु सत्य भी है। किन्तु रूपए के मूल्य के गिरावट में अस्वभाविक क्या है? क्या भारतीय रूपया एक मात्र करेंसी है जो लगातार डेप्रिसिएट हो रही है? इस प्रश्न के एक शब्द में उत्तर है ‘नहीं’। दुनिया की लगभग सारी बड़ी मुद्राएँ लगातार डेप्रिसिएट हो रही हैं और ऐसा होना स्वाभाविक भी है।
दुनिया अभी अनेक तरह की अनिश्चितताओं से घिरी हुई है। कोरोना काल के दौरान सप्लाई चेन के डिस्ट्र्ब होने के बाद अभी तक स्थितियाँ अभी तक सामान्य भी नहीं हुई थीं कि उक्रेन और रूस में युद्ध शुरू हो गया। ये दोनों ही देश जो दुनिया के बड़े गेहूँ निर्यातक हैं। इतना ही नहीं पुरा यूरोप रूस के तेल व गैस पर निर्भर है। इस युद्ध के कारण दुनिया की अर्थव्यवस्था का एक बहुत बड़ा भाग खाद्य पदार्थों व तेल तथा गैस की कमी से जूझने लगा जिसका असर पूरी दुनिया में ना सिर्फ महँगाई पर ही पड़ा बल्कि आर्थिक गतिविधियों पर पड़ रहा है। और यही कारण है कि दुनिया की लगभग सभी मुद्राएँ कमजोर हुई हैं।
यह मानव का सामान्य व्यवहार है वह कम खतरे को प्राथमिकता देता है। आर्थिक दृष्टिकोण से अमेरीका आज भी दुनिया की सबसे सुरक्षित अर्थव्यवस्था है। और जैसा कि होना चाहिए, दुनिया की सभी अर्थव्यवस्थाओं से विदेशी निवेश निकलकर अमेरीका की ओर जाने लगा है। जिस कारण अमेरीका डॉलर दुनिया की मुद्राओं की तुलना में मजबूत हुआ है। और भारत कोई अपवाद नहीं है। हालाँकि इसी अवधि में रशियन रूबल बाकी मुद्राओं सहित अमेरीका डॉलर की तुलना में मजबूत हुआ है।
यदि आप संलग्न चित्र के देखेंगे तो पाएंगे कि यूक्रेन-रूस युद्ध प्रारम्भ होने पश्चात रशियन रूबल के अलावा सभी बड़ी मुद्राएँ डेप्रिसिएट हुई हैं और अमेरीकी डॉलर भी इससे बच नहीं पाया है। अमेरीकी डॉलर में 11.3% का डेप्रिसिएशन हुआ है। इसी समयावधि में भारतीय रूपए में 5.3% का डेप्रिसिएशन हुआ है।
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