जर्मनी ने घृणा फैलाने के नाम पर दक्षिणपंथी 'कॉम्पैक्ट पत्रिका' पर प्रतिबंध लगा दिया है। यह प्रतिबन्ध आंतरिक मंत्री फेजर के आदेश पर लगाया गया है। इतना ही नहीं बल्कि पत्रिका के प्रधान संपादक जुर्गन एल्सेसर के घर पर छापा भी मारा गया है।
क्यों?
क्योंकि प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष मानकों के अनुसार, आजकल गलत को गलत व हत्यारे को हत्यारा कहना भी घृणास्पद माना जाता है!
'कॉम्पैक्ट पत्रिका' की सबसे बड़ी गलती यह है कि 'कॉम्पैक्ट पत्रिका' जर्मनी में जर्मन संस्कृति का समर्थन करते हुए किसी अन्य संस्कृति के प्रचार व प्रसार का मुखर विरोधी है जो संयोग से वर्तमान सरकार की नीतियों के विरूद्ध है और सरकार का विरोध करना दुनिया में कहीं भी और पश्चिमी देशों में विशेषकर लोकतन्त्र, प्रगतिशीलता व स्वतन्त्रता का हनन है! सरकार तो सरकार होती है और उसका समर्थन हर किसी को करना ही चाहिए। वैसे बुद्धिजीवी होने का सर्टिफिकेट मिलने के बाद व्यक्ति को बस अपने विचारधारा की पार्टी की सरकार को समर्थन करने और बाकी सभी विचारों को नाजी और फासिस्ट कहने व साबित करने की छूट और यदि आप अपने अभिव्यक्ति से स्वतंत्रता का उपयोग करते उनका विरोध करते हैं तो आप निश्चित रूप से फासिस्ट हैं!
जर्मनी इस 'बैन' व 'छापे' की विशिष्ट विधि से अपने देश में 'प्रेस की स्वतंत्रता' का समर्थन कर रहा है। ‘बैन व छापा’ विधि का जन्म दिया ही इसीलिए गया है। उपद्रव व उपद्रवकारियों को समर्थन व विरोध भी एक बहुत महत्त्वपूर्ण विधि है जिसमें सिर्फ जर्मनी ही नहीं वरन लगभग सभी पश्चिमी व विकसित देश परांगत हैं। लगभग सभी पश्चिमी व विकसित देशों की नीति है कि अपने देश में उपद्रव व उपद्रवकारियों को फासिस्ट बताते हुए उन पर कार्यवाई करना और बाकी देशों में उपद्रव व उपद्रवकारियों को बढ़ावा देना उनका उत्तरदायित्व होता है!
हालाँकि इन सभी विधियों के बीच यदि कल भारत में किसी नागरिक द्वारा किसी पत्रकार से एक कठिन प्रश्न भी पूछ लिए जाए या विरोध हो जाए तो उसी जर्मनी द्वारा अपने उसी 'प्रेस की स्वतंत्रता' के बारे में व्याख्यान देते हुए भारत को अपनी नीतियों को और प्रगतिशील बनाने का प्रवचन दिया जाएगा और जर्मनी पुरा प्रयास करेगा कि इस प्रगतिशीलता की प्रक्रिया में भारत को प्रशिक्षित करने के कार्य वही करे!
संयोग इतना शानदार होगा कि World Press Freedom Index (विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक) जारी करने वाली संस्था इन्हीं प्रगतिशील लोगों की राय के अनुसार विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक जारी करते हुए भारत को ज्ञान देता दिखेगा। इस प्रकार विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक अपने पीछे एक शानदार विरासत छोड़ता जा रहा है!
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