आर्थिक विकास में कृषि व विनिर्माण जैसे पारंपरिक क्षेत्रों के अलावा सेवा और प्रौद्योगिकी क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। ये क्षेत्र न केवल अर्थव्यवस्था को संरचनात्मक विविधता प्रदान करते हैं, बल्कि विकास के वाहक और जोखिम शमन तंत्र प्रदान करने के साथ-साथ भारत को दुनिया का उत्पादन केंद्र बनने के इसके सपने को आधार भी प्रदान करते हैं।
अर्थव्यवस्था के स्तंभ
भारतीय अर्थव्यवस्था पिछले कुछ दशकों से सेवा आधारित रही है। अभी जीडीपी में सेवा क्षेत्र का योगदान लगभग 54 प्रतिशत, विनिर्माण 17.4 प्रतिशत और शेष 18.8 प्रतिशत योगदान कृषि क्षेत्र का है। दुनिया के विकसित देशों की तुलना में भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास यात्रा थोड़ी भिन्न रही है। विकसित देशों के आर्थिक विकास में उत्पादन क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था कृषि आधारित रही है। यहां प्रति व्यक्ति आय बहुत कम थी और विनिर्माण के क्षेत्र में भी ठीक से काम नहीं हुआ, इसलिए भारतीय अर्थव्यवस्था विकसित देशों का ‘बैक-ऑफिस’ बनकर सेवा आधारित अर्थव्यवस्था बन गई। एक तरफ सेवा क्षेत्र ने भारत को आगे बढ़ाया, वहीं दूसरी तरफ इसने इसकी संपूर्ण क्षमता के उपयोग की संभावना को सीमित भी किया है।हालांकि जीडीपी में कृषि क्षेत्र का योगदान घटा है, लेकिन अभी भी यह रोजगार, खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण आजीविका के लिए महत्वपूर्ण बना हुआ है। 42 प्रतिशत लोग कृषि से जुड़े हुए हैं, जिसमें फसल उत्पादन, पशुपालन, मत्स्य पालन और वानिकी शामिल हैं।
सेवा क्षेत्र : विकास इंजन
पिछले तीन दशकों में सेवा क्षेत्र भारत के प्राथमिक आर्थिक चालक के रूप में उभरा है। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में लगभग 54 प्रतिशत योगदान के अलावा यह क्षेत्र 30 प्रतिशत से अधिक कार्यबल को रोजगार प्रदान करता है। इस क्षेत्र में सूचना प्रौद्योगिकी, वित्तीय सेवाएं, दूरसंचार, खुदरा व्यापार (रिटेल), स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य कई पेशेवर सेवाएं शामिल हैं।आईटी क्षेत्र सालाना 230 अरब डॉलर से अधिक राजस्व उत्पनन करता है, जिसमें TCS, Infosys, Wipro और HCL जैसी कंपनियां वैश्विक स्तर पर तेजी से हो रहे डिजिटल बदलावों और पहलों में नेतृत्व करती हैं। यह क्षेत्र बुनियादी सॉफ्टवेयर विकास से लेकर कृत्रिम बुद्धिमता (एआई), मशीन लर्निंग, क्लाउड कंप्यूटिंग और साइबर सुरक्षा समाधानों सहित उन्नत सेवाओं तक विकसित हुआ है। वर्तमान में वैश्विक आईटी आउटसोर्सिंग बाजार में भारत की हिस्सेदारी 55 प्रतिशत है। भारतीय कंपनियां 200 से अधिक देशों में निर्यात करती हैं। यह क्षेत्र 55-60 लाख लोगों को रोजगार प्रदान करता है, जिनमें 45 लाख लोग सीधे तौर पर जुड़े हैं। इस वर्ष यह क्षेत्र 4-4.5 लाख लोगों को नौकरियां दे सकता है।
वित्तीय सेवाएं : डिजिटल क्रांति
वित्तीय क्षेत्र का आधुनिकीकरण हुआ है, जिसमें डिजिटल भुगतान प्रणाली, फिनटेक नवाचार और बैंकिंग क्षेत्र में सुधार वित्तीय समावेशन को आगे बढ़ा रहे हैं। जीडीपी में इस क्षेत्र का योगदान 7.4 प्रतिशत है। यह सभी क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों के लिए रीढ़ की हड्डी के रूप में कार्य करता है। भारत में डिजिटल क्रांति बहुत सफल रही है। खासतौर से यूपीआई लेन-देन हर महीने 10 अरब से अधिक हो गया है। साथ ही, प्रधानमंत्री जन-धन योजना के तहत अब तक (9 अप्रैल, 2025 तक) 55.28 करोड़ लोगों खाते खोले जा चुके हैं। यह योजना लोगों को बैंकिंग सेवाओं से जोड़ती है, जिसमें रुपे डेबिट कार्ड, ब्याज और प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) के जरिए सरकारी योजनाओं का सीधा लाभ भी शामिल है। वर्तमान में वर्तमान में फिनटेक अपनाने की दरों में वैश्विक स्तर पर भारत सबसे आगे है। फिनटेक स्टार्टअप फंडिंग और यूनिकॉर्न के मामले में भारत, अमेरिका और चीन के बाद तीसरे स्थान पर है। फिनटेक क्रांति ने पारंपरिक बैंकिंग को दरकिनार कर मोबाइल फर्स्ट वित्तीय समाधानों को अपनाने में बहुत मदद की है, जिससे लाखों लोग डिजिटल बैंकिंग और भुगतान सेवाओं से जुड़े हैं। भारत में 2,500 से अधिक फिनटेक स्टार्टअप है, जो अमेरिका के बाद दूसरे स्थान पर है।विनिर्माण क्षेत्र : औद्योगिक रीढ़
विनिर्माण क्षेत्र आर्थिक विकास में एक प्रमुख चालक के रूप में उभरा है, जो जीडीपी, रोजगार और निर्यात में महत्वपूर्ण योगदान देता है। इसमें कपड़ा, फार्मास्युटिकल्स, वाहन, रसायन, इस्पात और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे प्रमुख उद्योग शामिल हैं। बीते एक दशक में इस क्षेत्र में उल्लेखनीय विकास हुआ है, जो नीतिगत सुधारों, तकनीकी विकास और प्रमेख औद्योगिक क्षेत्रों में रणनीतिक निवेशों से प्रेरित है। विशेषकर ‘मेक इन इंडिया’, उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाओं और बुनियादी ढांचे के विकास जैसी सरकारी पहलों से इसमें तेजी आई है। इस कारण यह क्षेत्र देश के आर्थिक परिवर्तन की आधारशिला के रूप में उभरा है और भारत को चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभरने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। बीते 5 वर्ष में यह क्षेत्र सालाना औसतन 12.5 प्रतिशत की दर से बढ़ा है, जो वैश्विक विनिर्माण विकास दरों से काफी आगे है और भारत को आर्थिक लचीलापन प्रदान करता है। 2025 में विनिर्माण क्षेत्र लगभग 1 ट्रिलियन डॉलर यानी 83 लाख करोड़ रुपये के ऐतिहासिक स्तर के करीब पहुंच गया है। जीडीपी में इसका योगदान लगभग 17 प्रतिशत है तथा देश के आर्थिक विकास, निर्यात एवं रोजगार सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।कपड़ा और परिधान: भारत का कपड़ा उद्योग सबसे पुराने और सबसे महत्वपूर्ण विनिर्माण क्षेत्रों में से एक है, जो देश के कुल निर्यात राजस्व में लगभग 11 प्रतिशत का योगदान देता है। इस क्षेत्र में सूती वस्त्र, सिंथेटिक वस्त्र, जूट, रेशम और ऊनी उत्पाद शामिल हैं, जो प्रत्यक्ष रूप से लगभग 4.5 करोड़ और परोक्ष रूप से 10 करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार प्रदान करता है। इन्वेस्ट इंडिया रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में इस क्षेत्र का आकार 52.7 अरब डॉलर था, जो इस वर्ष लगभग 92.5 अरब डॉलर यानी लगभग 7.7 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है। साथ ही, 2025-26 में कपड़ा निर्यात 65 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। 2030 तक घरेलू और निर्यात, दोनों मिलाकर भारतीय कपड़ा उद्योग का आकार 350 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। कच्चे माल की उपलब्धता, कुशल कार्यबल, प्रतिस्पर्धी मूल्य निर्धारण और स्थापित वैश्विक आपूर्ति शृंखलाएं कपड़ा व परिधान विनिर्माण क्षेत्र की शक्ति है। प्रमुख कपड़ा केंद्रों में तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक शामिल हैं। हालांकि पिछले कुछ वर्षों से बांग्लादेश, चीन और वियतनाम जैसे देशों से इस क्षेत्र को कड़ी चुनौती मिल रही है। भारत ने बांग्लादेश से रेडीमेड वस्त्रों के आयात पर प्रतिबंध लगाए हैं, जिससे सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम (एमएसएमई) को प्रतिस्पर्धात्मक लाभ मिल रहा है।
फार्मास्युटिकल: भारत को ‘विश्व की फार्मेसी’ कहा जाता है, क्योंकि यह वैश्विक मांग का लगभग 60 प्रतिशत वैक्सीन की आपूर्ति करता है। यह वैश्विक जेनेरिक दवाओं के उत्पादन में 20 प्रतिशत का योगदान देता है, जिससे दुनिया भर में सस्ती और गुणवत्तापूर्ण दवाएं उपलब्ध होती हैं। यूनिसेफ को 55-60 प्रतिशत वैक्सीन की आपूर्ति के साथ भारत विश्व स्वास्थ्य संगठन (डबल्यूएचओ) के डीपीटी वैक्सीन की 99 प्रतिशत तथा बीसीजी वैक्सीन की 52 प्रतिशत वैश्विक मांग को पूरा करता है। फार्मास्युटिकल क्षेत्र का सालाना कारोबार 2023-24 में 50 अरब डॉलर यानी 4.17 लाख करोड़ था। यह क्षेत्र सालाना 7-10 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। अमिरका, यूके, बेल्जियम, दक्षिण अफ्रिका, ब्राजील सहित 200 से अधिक देशों में भारत दवाओं का निर्यात करता है। अमेरिका की जेनेरिक दवा आवश्यकताओं का लगभग 40 प्रतिशत और यूके की दवा आवश्यकताओं का 25 प्रतिशत आपूर्ति भारतीय कंपनियां करती हैं।
ऑटोमोटिव क्षेत्र: भारत की अर्थव्यवस्था में वाहन उद्योग सबसे बड़े क्षेत्रों में से एक है। अमेरिका (78 लाख करोड़ रु.) और चीन (47 लाख करोड़ रु.) के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा वाहन बाजार है। 2014 में इसका आकार 7.5 लाख करोड़ रुपये था, जो तीन गुना बढ़कर लगभग 22 लाख करोड़ रुपये हो गया है। रोजगार देने के मामले में यह क्षेत्र देश में अग्रणी है। अभी लगभग 4.5 करोड़ लोग इससे जुड़े हुए हैं। देश में मध्यम वर्ग का विकास, तेजी से शहरीकरण, इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए सरकारी समर्थन तथा तमिलनाडु, महाराष्ट्र और हरियाणा जैसे राज्यों में स्थापित विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र ने भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
रसायन और पेट्रोकेमिकल: कपड़ा और वाहन उद्योग की तरह भारत का रसायन एवं पेट्रोकेमिकल उद्योग भी तेजी से बढ़ रहा है, जो अर्थव्यवस्था में 6 प्रतिशत का योगदान देता है। भारत विश्व का छठा सबसे बड़ा और एशिया का तीसरा सबसे बड़ा रसायन उत्पादक देश है। कुल निर्यात में इसका योगदान लगभग 15 प्रतिशत है। वर्तमान में भारत 175 से अधिक देशों को रसायन निर्यात करता है। 50 लाख से अधिक लोगों को रोजगार देने वाले इस क्षेत्र का आकार 2024 में लगभग 220 अरब डॉलर था, जो 2025 में लगभग 300 अरब डॉलर (लगभग 25 लाख करोड़ रु.) होने का अनुमान है। सरकार की नीतियों, निवेश और बढ़ती घरेलू मांग को देखते हुए 2040 तक इसके 1 खरब डॉलर तक पहुंचने की संभावना है।
विनिर्माण क्षेत्र में भविष्य
भारत का विनिर्माण क्षेत्र कई उभरते रुझानों और रणनीतिक पहलों से प्रेरित होकर आगे विस्तार के लिए तैयार है -डिजिटल विनिर्माण: IoT, AI और रोबोटिक्स सहित उद्योग 4.0 प्रौद्योगिकियों का एकीकरण पारंपरिक विनिर्माण प्रक्रियाओं को बदल रहा है। स्मार्ट कारखाने और स्वचालित उत्पादन लाइनें सभी क्षेत्रों में तेजी से आम होती जा रही हैं।
संवहनीय विनिर्माण: पर्यावरणीय विचार स्वच्छ उत्पादन प्रौद्योगिकियों और परिपत्र अर्थव्यवस्था (सर्कुलर इकोनॉमी) सिद्धांतों को अपनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। हरित विनिर्माण प्रथाओं को सभी क्षेत्रों में लागू किया जा रहा है, विशेष रूप से रसायन, कपड़ा और वाहन उद्योग में।
मेक इन इंडिया 2.0: सरकार विनिर्माण पर जोर दे रही है, जिसमें पीएलआई के माध्यम से उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाएं, बुनियादी ढांचे का विकास और व्यापार करने में आसानी जैसे सुधार शामिल हैं। लक्षित क्षेत्रों में इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्युटिकल्स, वाहन और नवीकरणीय ऊर्जा उपकरण शामिल हैं।
वैश्विक आपूर्ति शृंखला एकीकरण: भारतीय निर्माता तेजी से वैश्विक मूल्य शृंखलाओं का अभिन्न अंग बन रहे हैं, जिसमें कंपनियां गुणवत्ता सुधार, तकनीकी उन्नयन और अंतरराष्ट्रीय प्रमाणन पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं। सरकार ने महत्वाकांक्षी योजानाओं के तहत विनिर्माण गतिविधियों से सकल घरेलू उत्पाद का हिस्सा 17 प्रतिशत से बढ़ाकर 25 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा है।
भविष्य के उभरते क्षेत्र
डिजिटल अर्थव्यवस्था और प्रौद्योगिकी: देश की समग्र अर्थव्यवस्था की तुलना में यह क्षेत्र लगभग दोगुनी गति से बढ़ रहा है। अन्य क्षेत्रों की तुलना में इस क्षेत्र की उत्पादकता 5 गुना अधिक है। 2029-30 तक यह न केवल कृषि और विनिर्माण जैसे पारंपरिक क्षेत्रों से आगे निकल जाएगा, बल्कि राष्ट्रीय आय (जीडीपी/सकल मूल्य वर्धित) में 20 प्रतिशत का योगदान देने की स्थिति में होगा। 2022-23 में जीडीपी में डिजिटल अर्थव्यवस्था का योगदान 11.74 प्रतिशत था, जो 2024-25 में 13.42 प्रतिशत हो गया। इसमें 1.47 प्रतिशत लोग कार्यरत थे, जो देश के कुल कार्यबल का 2.55 प्रतिशत है। भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था 2025 तक 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुचने का अनुमान है। इसके प्रमुख विकास क्षेत्रों में एआई, डिजिटल प्लेटफॉर्म, क्लाउड सेवाएं, इंटरनेट उपलब्धता, टेलीकम्युनिकेशन तो शामिल है ही, कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि क्षेत्रों में भी यह तेजी से बढ़ रहा है। एआई अनुसंधान में भारत 11वें और एआई अवसंरचना में दुनिया में 16वें स्थान पर है।नवीकरणीय ऊर्जा: भारत की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता 2014 में 75 गीगावाट थी, जो 2025 में तीन गुना से अधिक बढ़कर 232 गीगावाट हो गई है। 2030 तक भारत का लक्ष्य 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता और 2070 तक शून्य उत्सर्जन हासिल करने का है। स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र सौर, पवन, हरित हाइड्रोजन और ऊर्जा भंडारण प्रौद्योगिकियों में बड़े पैमाने पर निवेश आकर्षित कर रहा है, जिससे नए रोजगार के अवसर और औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र बन रहे हैं। सौर ऊर्जा उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। सौर और पवन ऊर्जा उत्पादन में भारत दुनिया में तीसरे स्थान पर पहुंच गया है। सौर ऊर्जा उत्पादन 2014 में 2.8 गीगावाट से बढ़कर 2025 में 108 गीगावाट हो गई है। इसी तरह, सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता 10 वर्ष में 2 गीगावाट से बढ़कर 90 गीगावाट तक पहुंच गई है और 2030 तक इसे 150 गीगावाट करने का लक्ष्य है। पवन ऊर्जा की क्षमता 2014 में 21 गीगावाट थी, जो अब 51 गीगावाट हो गई है। नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए 59 सौर पार्कों की स्थापना की मंजूरी के साथ गुजरात में 30 गीगावाट क्षमता वाली हाइब्रिड सौर-पवन परियोजना भी विश्व की सबसे बड़ी परियोजना बनने की ओर अग्रसर है।
स्वास्थ्य सेवा और जैव प्रौद्योगिकी: स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र भी तेजी से बढ़ रहा है। जैव प्रौद्योगिकी, टेलीमेडिसिन, चिकित्सा उपकरण और दवा अनुसंधान क्षेत्र में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है, विशेष रूप से कोविड-19 के बाद।
शिक्षा प्रौद्योगिकी और कौशल विकास: एड-टेक क्षेत्र में ऑनलाइन शिक्षण प्लेटफॉर्म, कौशल विकास कार्यक्रम और पेशेवर प्रमाणन पाठ्यक्रमों के साथ मुख्यधारा की स्वीकृति प्राप्त करने के साथ तेज वृद्धि देखी गई है। यह क्षेत्र नवीन तकनीकी समाधानों के माध्यम से भारत की विशाल शिक्षा और कौशल विकास आवश्यकताओं को संबोधित कर रहा है।
जनसांख्यिकीय लाभांश और शहरीकरण
भारत का जनसांख्यिकीय लाभ 28 वर्ष की औसत आयु के साथ आर्थिक विस्तार को पर्याप्त कार्यबल प्रदान करता है। तेजी से शहरीकरण नए उपभोग पैटर्न, बुनियादी ढांचे की मांग और सेवा क्षेत्र के अवसरों का निर्माण कर रहा है। 2030 तक शहरी भारत से जीडीपी में 75 प्रतिशत योगदान मिलने की उम्मीद है, जबकि 40 प्रतिशत आबादी शहरों में निवास करेगी। शहरी क्षेत्रों की जनसंख्या प्रतिवर्ष 2.4 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। कार्यबल के लिहाज से 15-64 वर्ष के लगभग 70 प्रतिशत लोग देश के विकास में अपना योगदान दे रहे हैं। अच्छी बात यह है कि इनमें से बहुतायत डिजिटल रूप से सक्षम हैं। यह स्थिति डिजिटल इंडिया और विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों के चलते है। यदि इस जनसांख्यिकीय बढ़त को भारत ने अपने पक्ष में भुना लिया तो 2075 के बाद की चुनौतियों के लिए देश तैयार हो जाएगा, जब अधिकांश आबादी वृद्ध हो चुकी होगी।कृत्रिम बुद्धिमत्ता, IoT, ब्लॉकचेन, रोबोटिक्स और 5G प्रौद्योगिकी के माध्यम से भारत चौथी औद्योगिक क्रांति की ओर तेजी से बढ़ रहा है। विनिर्माण उद्योग स्मार्ट फैक्ट्री की अवधारणाओं को लागू कर रहे हैं, जबकि सेवा क्षेत्र उत्पादकता और ग्राहक अनुभव को बढ़ाने के लिए स्वचालन और डेटा एनालिटिक्स का लाभ उठा रहे हैं। भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने के लिए समावेशी अर्थव्यवस्था अनिवार्य है। इसके लिए उचित नियमन और योजनाओं की आवश्यकता पड़ेगी जो इन तकनीकों के समावेशी प्रयोग के लिए प्रेरित करे।
आज भारत में पर्यावरणीय स्थिरता, सतत विकास व हरित अर्थव्यवस्था आर्थिक नियोजन का अभिन्न अंग बन रही है, जिसमें हरित वित्त, कार्बन बाजार और परिपत्र अर्थव्यवस्था के सिद्धांत प्रमुखता प्राप्त कर रहे हैं। संधारणीय प्रथाओं की ओर संक्रमण से सभी क्षेत्रों में नए व्यवसाय मॉडल और निवेश के अवसर पैदा हो रहे हैं।
सरकारी पहल और नीति ढांचा
सरकार ने आर्थिक विकास और क्षेत्रीय विकास में तेजी लाने के लिए कई रणनीतिक पहल शुरू की हैं। आर्थिक विकास बढ़ावा देने के लिए परिवहन, ऊर्जा, शहरी अवसंरचना और डिजिटल कनेक्टिविटी के विकास पर 1.4 खरब डॉलर की निवेश योजना है। उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना का उद्देश्य 26 अरब डॉलर के प्रोत्साहन के साथ 14 क्षेत्रों में विनिर्माण को बढ़ावा देना है। डिजिटल इंडिया मिशन ने प्रौद्योगिकी अपना कर सरकारी सेवाओं की पहुंच और पारदर्शिता बढ़ाई है। आधार, डिजिलॉकर, ई-हॉस्पिटल, ई-संजीवनी (टेलीमेडिसिन), उमंग एप और ऑनलाइन पेंशन जैसी सेवाएं लोगों को घर बैठे उपलब्ध कराई जा रही है। इन सब के कारण भ्रष्टाचार, भौगोलिक बाधाएं और काम में देरी जैसी समस्याएं कम हुई हैं।इसी तरह, वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी), दिवाला एवं दिवालियापन संहिता (आईबीसी) तथा व्यापार करने में आसानी जैसे विनियामक सुधारों ने निवेश के माहौल को बेहतर बनाया है। बुनियादी ढांचे के विकास, कौशल विकास तथा नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र निर्माण पर सरकार का ध्यान सतत आर्थिक विकास के लिए अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण कर रहा है।
चुनौतियां और अवसर
बहरहाल, उल्लेखनीय प्रगति के बावजूद भारत को आय असमानता, बेरोजगारी, बुनियादी ढांचे में कमी, पर्यावरण संबंधी चिंताएं तथा निरंतर कौशल उन्नयन की आवश्यकता सहित कई आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इसके अलावा, कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, संसाधन की कमी तथा वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताएं भी चुनौती बनी हुई हैं। भारत को यह समझना होगा कि अमेरिका और यूरोप तेजी से वृद्ध होती आबादी तथा बढ़ती बेरोजगारी के कारण अपनी नीतियां तेजी से बदल रहे हैं। अत: भारत को भी इसे ध्यान में रखकर योजना बनानी होगी।पीएलआई तथा स्टार्टअप योजना से विनिर्माण व सेवा क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि तो आई है, लेकिन सरकार को यह भी समझना होगा कि विनिर्माण और सेवा क्षेत्र के लिए भिन्न योजनाओं की आवश्यकता है। सेवा क्षेत्र के उपक्रमों को लाभ की स्थिति में आने के लिए 5 वर्ष का समय पर्याप्त होता है, लेकिन विनिर्माण क्षेत्र के लिए यह बहुत कम है। साथ ही, पीएलआई योजना की सफलता को असेम्बली लाइन बनने में न देखकर इस पर ध्यान देना होगा कि भारतीय कंपनियां शोध और विकास के जरिए स्वदेशी उत्पाद तैयार कर इसे घरेलू और वैश्विक बाजार में बेचें। आज अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप धमकी दे रहे हैं कि एप्पल अमेरिका में अपने फोन बनाए। एप्पल भले ही भारत में कुछ लोगों को रोजगार दे रही है, लेकिन भारत को उससे सीधा आर्थिक लाभ नहीं मिल रहा है। एक एप्पल फोन के अंतिम मूल्य का मात्र दो प्रतिशत ही भारत को मिलता है, जो दूसरे दरवाजे से पीएलआई के रूप में वापस एप्पल और अमेरिका को मिल जाता है।
भारत का विशाल घरेलू बाजार, कुशल कार्यबल, तकनीकी क्षमताएं और रणनीतिक भौगोलिक स्थिति महत्वपूर्ण प्रतिस्पर्धी लाभ प्रदान करती हैं। देश वैश्विक आपूर्ति शृंखला विविधीकरण, डिजिटल परिवर्तन प्रवृत्तियों तथा संधारणीय समाधानों की बढ़ती मांग का लाभ उठाने के लिए अच्छी स्थिति में है। नवीकरणीय ऊर्जा, विनिर्माण, डिजिटल सेवाओं के निर्यात तथा दवा उत्पादन के वैश्विक केंद्र के तौर पर भारत की स्थिति आर्थिक विस्तार तथा अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा की जबरदस्त संभावनाएं प्रदान करती हैं।
बड़ लक्ष्य की ओर
भारत का लक्ष्य 2030 तक 10 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनना है, जिसके लिए सालाना 8-9 प्रतिशत की निरंतर जीडीपी वृद्धि आवश्यक है। इस लक्ष्य की प्राप्ति सभी क्षेत्रों में संरचनात्मक सुधारों, बुनियादी ढांचे के विकास, मानव पूंजी वृद्धि और तकनीकी नवाचार के सफल निष्पादन पर निर्भर करती है। सेवा क्षेत्र से उम्मीद है, लेकिन ‘मेक इन इंडिया’ के तहत उत्पादन बढ़ाना ताकि जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी 25 प्रतिशत हो। नवीकरणीय ऊर्जा, जैव प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और उन्नत विनिर्माण जैसे उभरते क्षेत्रों को भी इसमें अधिक से अधिक योगदान देना होगा।आईएमएफ के अनुसार, भारत साढ़े पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था के साथ 2028 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। हालांकि भारत 2027 की पहली या दूसरी तिमाही तक ही 5 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा। इस उपलब्धि के कारण विश्व पर एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ेगा जो भारत को वैश्विक स्तर कूटनीतिक बढ़त देगा और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का प्रभाव बढ़ाने वाला होगा।
राजीव उपाध्याय
डॉउनलोड डॉक्यूमेंट:- विकास बढ़ा रुतबा चढ़ा
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