हक़ीकत नहीं ये, ना ही फसाना है
बस ख्वाबों में मेरा, आना-जाना है॥
लोगों की बातें मैं सुनता नहीं
अपना कहा मैं करता नहीं
अब होने ये क्या लगा है
दिल ही नहीं ये, ना ही मयखाना है।
बस ख्वाबों में मेरा, आना-जाना है॥
जब आसमां से उतर, जमीं देखता हूँ
सड़क है ना पगडंडी, ना पग के निशां
ढूँढू तो ढूँढू, आशियां अपना कैसे
राह-ए-डगर को जो रूक जाना है।
हक़ीकत नहीं ये, ना ही फसाना है॥
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राजीव उपाध्याय
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