जब आदमी नज़र आता है

कि उम्र सारी 
बदल कर चेहरे 
खुद को सताता है 
जब जूस्तजू जीने की 
सीने में जलाता है; 
उम्र के 
उस पड़ाव पर 
आ कर ठहर जाना ही 
सफ़र कहलाता है 
आदमी
जब आदमी नज़र आता है।
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राजीव उपाध्याय

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