सालती है जब ना तब

मुश्किल नहीं बातों को
भुलाकर बढ जाना आगे;
पर धूल जो लगी है पीठ पर
सालती है जब ना तब
और सालती रहेगी जब तक
कुछ ना कुछ होता रहेगा
कि होने से फिर होने का
इक सिलसिला हो जाएगा
जो फिर कहानी में कई
मोड़ तक ले जाएगा
और जाने का सिला
जानिब तक पहुँच ना पाएगा।
----------------------------
राजीव उपाध्याय

आईना मगर सब कहता है

कर जो-जो तू चाहता है
कि मुक्कमल जहाँ में तू रहता है।

हसरतें तेरी आसमानी हैं
कि सब कुछ तू, तू ही चाहता है।

जमीं आसमां एक करता है
आसमां मगर जमीं पर ही रहता है।

कोई सवाल नहीं है तुझसे
मगर सवाल तो बनता है।

अब तू जवाब दे ना दे
आईना मगर सब कहता है।
----------------------------
राजीव उपाध्या

नाम पूछते हैं

कत्ल करने से पहले वो मेरा नाम पूछते हैं 
छुपी हुई नाम में कोई पहचान पूछते हैं। 

यूँ करके ही शायद ये दुनिया कायम है 
जलाकर घर मेरा वो मेरे अरमान पूछते हैं। 

तबीयत उनकी यूँ करके ही उछलती है 
जब आँसू मेरे होने का मुकाम पूछते हैं। 

ऐसा नहीं कि दुनिया में और कोई रंग नहीं 
पर कूँचें मेरी हाथों की दुकान पूछते हैं। 

हर बार कहता हूँ बस रहने दो अब नहीं 
पर भीड़ में आकर वही फिर नाम पूछते हैं।
---------------------
राजीव उपाध्याय