आईना मगर सब कहता है

कर जो-जो तू चाहता है
कि मुक्कमल जहाँ में तू रहता है।

हसरतें तेरी आसमानी हैं
कि सब कुछ तू, तू ही चाहता है।

जमीं आसमां एक करता है
आसमां मगर जमीं पर ही रहता है।

कोई सवाल नहीं है तुझसे
मगर सवाल तो बनता है।

अब तू जवाब दे ना दे
आईना मगर सब कहता है।
----------------------------
राजीव उपाध्या

No comments:

Post a Comment