कत्ल करने से पहले वो मेरा नाम पूछते हैं
छुपी हुई नाम में कोई पहचान पूछते हैं।
यूँ करके ही शायद ये दुनिया कायम है
जलाकर घर मेरा वो मेरे अरमान पूछते हैं।
तबीयत उनकी यूँ करके ही उछलती है
जब आँसू मेरे होने का मुकाम पूछते हैं।
ऐसा नहीं कि दुनिया में और कोई रंग नहीं
पर कूँचें मेरी हाथों की दुकान पूछते हैं।
हर बार कहता हूँ बस रहने दो अब नहीं
पर भीड़ में आकर वही फिर नाम पूछते हैं।
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राजीव उपाध्याय
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