पिछले कुछ दिनों से जबसे भारत में कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ने लगी है, गोमूत्र पुनः चर्चा में आ गया है। कुछ लोग गोमूत्र सेवन को कोरोना से बचाव का उपाय बताते हुए गोमूत्र पार्टी का आयोजन कर रहे हैं। कुछ इस दावे का उपहास उड़ा रहे हैं। वहीं पर कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इन दावों के उपहास के आड़ में उन प्रतीकों का भी अपमान कर रहे हैं जिनसे हिन्दू समाज की भावनाएँ जुड़ी हुई हैं।
हालाँकि इस चर्चा के बीच सबसे सकारात्मक बात ये है कि कुछ लोग ऐसे भी हैं जो गोमूत्र द्वारा कोरोना के उपचार से संबन्धित दावे के विभिन्न वैज्ञानिक पहलुओं पर चर्चा करते हुए या तो इस दावे के पक्ष में हैं या फिर विपक्ष में हैं। ऐसी हर वैज्ञानिक चर्चा को समाज का मोरल सपोर्ट मिलना चाहिए भले ही उस चर्चा की परिणिति गोमूत्र के पक्ष में हो या फिर विपक्ष में। विमर्श ही किसी समाज को जीवन्त बनाए रखकर समय के साथ कदम मिलाकर चलने के लिए तैयार करता है तथा एक उदार और बेहतर समाज की रचना में सहयोगी होता है।
संभव है कि गोमूत्र में कुछ औषधीय गुण हों जो कुछ विशेष रोगों या परिस्थितियों में गुणकारी हों। यह पूरी तरह से वैज्ञानिक शोध का विषय है्। इसे बिना किसी पूर्वाग्रह के स्वीकार करना चाहिए। परन्तु यह कदाचित बिल्कुल भी संभव नहीं है कि गोमूत्र या किसी भी पदार्थ में हर तरह के रोगों के ठीक करने का गुण हो! ऐसा दावा सिर्फ हास्यास्पद ही हो सकता है। और इस तरह के दावे करने वाले लोगों को समाज द्वारा हतोत्साहित करना अनिवार्य है। ऐसे लोग समाज में गलत परम्पराओं को ना सिर्फ जन्म देते हैं बल्कि उनको मान्यता भी दिलवाते हैं और ये खतरनाक है। परन्तु वो लोग ज्यादा खतरनाक हैं जो उपहास उड़ाने के आड़ में उन प्रतीकों का भी अपमान करते हैं जो किसी समूह या समाज की धार्मिक भावनाओं से जुड़ा हो। ऐसे लोगों को समाज को बूरी तरह से फटकारना चाहिए।
वैसे भी हर बात में अभिव्यक्ति एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता की बात करने वाले लोगों के हिसाब से गोमूत्र सेवन करना भी तो उसी स्वतंत्रता के तहत नहीं आता है क्या? आपको तो गौमांस खाने की जिद्द में उसमें पौष्टिक तत्व दिखाई देते हैं फिर आपको गोमूत्र सेवन से क्यों परेशानी है? या फिर आपके सिद्धांत चेहरे देखकर बदलते रहते हैं!!
राजीव उपाध्याय
हालाँकि इस चर्चा के बीच सबसे सकारात्मक बात ये है कि कुछ लोग ऐसे भी हैं जो गोमूत्र द्वारा कोरोना के उपचार से संबन्धित दावे के विभिन्न वैज्ञानिक पहलुओं पर चर्चा करते हुए या तो इस दावे के पक्ष में हैं या फिर विपक्ष में हैं। ऐसी हर वैज्ञानिक चर्चा को समाज का मोरल सपोर्ट मिलना चाहिए भले ही उस चर्चा की परिणिति गोमूत्र के पक्ष में हो या फिर विपक्ष में। विमर्श ही किसी समाज को जीवन्त बनाए रखकर समय के साथ कदम मिलाकर चलने के लिए तैयार करता है तथा एक उदार और बेहतर समाज की रचना में सहयोगी होता है।
संभव है कि गोमूत्र में कुछ औषधीय गुण हों जो कुछ विशेष रोगों या परिस्थितियों में गुणकारी हों। यह पूरी तरह से वैज्ञानिक शोध का विषय है्। इसे बिना किसी पूर्वाग्रह के स्वीकार करना चाहिए। परन्तु यह कदाचित बिल्कुल भी संभव नहीं है कि गोमूत्र या किसी भी पदार्थ में हर तरह के रोगों के ठीक करने का गुण हो! ऐसा दावा सिर्फ हास्यास्पद ही हो सकता है। और इस तरह के दावे करने वाले लोगों को समाज द्वारा हतोत्साहित करना अनिवार्य है। ऐसे लोग समाज में गलत परम्पराओं को ना सिर्फ जन्म देते हैं बल्कि उनको मान्यता भी दिलवाते हैं और ये खतरनाक है। परन्तु वो लोग ज्यादा खतरनाक हैं जो उपहास उड़ाने के आड़ में उन प्रतीकों का भी अपमान करते हैं जो किसी समूह या समाज की धार्मिक भावनाओं से जुड़ा हो। ऐसे लोगों को समाज को बूरी तरह से फटकारना चाहिए।
वैसे भी हर बात में अभिव्यक्ति एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता की बात करने वाले लोगों के हिसाब से गोमूत्र सेवन करना भी तो उसी स्वतंत्रता के तहत नहीं आता है क्या? आपको तो गौमांस खाने की जिद्द में उसमें पौष्टिक तत्व दिखाई देते हैं फिर आपको गोमूत्र सेवन से क्यों परेशानी है? या फिर आपके सिद्धांत चेहरे देखकर बदलते रहते हैं!!
राजीव उपाध्याय
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