कोरोना वायरस, लॉकडॉउन और बैंकों लगती भीड़

कोरोना वायरस, लॉकडॉउन और बैंकों लगती भीड़केन्द्र और राज्य सरकारों ने कोरोना वायरस के प्रकोप को देखते हुए गरीब, मजदूरों और अन्य वंचित वर्गों के लिए सहायता राशि देने का निर्णय लिया है जो भारत जैसे गरीब एवं सीजनल रोगजार वाले देश के लिए एक बहुत ही जरूरी एवं कारगर पहल साबित हो सकती है। हालाँकि सहायता हेतु घोषित योजनाओं (केन्द्र व राज्य) को देखकर ऐसा लग रहा है कि शायद सरकारें कोरोना को सिर्फ कुछ हफ्तों की फीनोमिना मान रही हैं। हालाँकि ये भी संभव है कि सरकारें चरणगत तरीके से योजनाएँ बना रही हों।

केंद्र और राज्य सरकारों ने जबसे कोरोना वायरस के कारण फैलती महामारी और लॉकडॉउन के कारण संकट में आए लोगों के लिए सहायता एवं नरेगा राशि रीलीज किया है तबसे देश भर के बैंकों में बहुत ही ज्यादा भीड़ लगने लगी है। इस भीड़ के कारण सोशल डिस्टेंसिंग की सारी कोशिशें नाकाम हो रही हैं और लॉकडॉउन के कारण जो कुछ भी हाशिल हुआ है उसे खोने का डर पैदा होने लगा है। इस स्थिति में सरकार को इस सहायता राशि को लोगों तक पहुँचाने के तरीके को बदलना चाहिए। बेहतर होगा कि लोगों के बैंक जाने के बदले बैंक ही गाँव-गाँव जाकर इस पैसे का वितरण करें। इस काम में ग्राम पंचायतें एवं पुलिस एक बहुत ही सकारात्मक व बेहतर भूमिका निभा सकती हैं।



जैसा कि विदित है ये सहायता राशि जनधन एकाउंट में भेजा जा रहा है और अधिकतर जनधन एकाउंटों के आधार जुड़े होने की भरपूर संभावना है। भारत में पहले से ही बैंकिंग कियोस्क और आधार के जरिए पैसा के वितरण हो रहा है जो इस स्थिति में बहुत ही लाभकारी साबित हो सकता है। सरकार एक बैंक ब्रांच को कुछ गाँवों की जिम्मेदारी देकर एवं ग्राम पंचायतें एक विशेष समय में एक गाँव या टोले में इस वितरण की व्यवस्था कर ना सिर्फ इस भीड़ को घटा सकती है बल्कि सोशल डिस्टेंसिंग के प्रैक्टिस को जारी रखा जा सकता है।

सरकार को इस दिशा में जल्द ही सोचना चाहिए क्योंकि गाँवों लॉकडॉउन बहुत ही प्रभावी नहीं है। बाजारों में भीड़ हो रही है और यदि गाँवों में कम्यूनिटी ट्रांसमिशन प्रारम्भ हो गया तो स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के कारण इंफेक्शन के इस चेन को रोक पाना सरकारों के लिए बहुत ही मुश्किल काम हो जाएगा।

राजीव उपाध्याय

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