
ये प्रश्न मूलतः तीन तरह के बुनियादी किन्तु कठिन वास्तविकताओं जुड़े हैं जो सीधे-सीधे कोरोना वायरस के प्रसार एवं इलाज से संबन्धित हैं। पहला प्रश्न देश की जनसंख्या घनत्व से संबंधित है। दूसरा प्रश्न भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं एवं संरचनाओं की उपलब्धता से संबन्धित है्। तथा तीसरा प्रश्न लॉकडॉउन से अब तक हुए लाभ-हानि से संबन्धित है।
भारत दुनिया के सबसे अधिक जनसंख्या धनत्व वाले देशों में शामिल है। बड़े क्षेत्रफल एवं जनसंख्या वाले देशों की तुलना में भारत का जनसंख्या का घनत्व कई गुना अधिक है। वर्तमान में भारत का जनसंख्या धनत्व 420 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर से भी अधिक है। तात्पर्य ये है कि एक वर्ग किमी के क्षेत्र में कुल 420 से अधिक नागरिकों के निवास एवं अन्य सभी सुविधाओं के लिए सिर्फ एक वर्ग किमी का क्षेत्र उपलब्ध है। जनसंख्या घनत्व क यह औसत भारत को एक बहुत ही घनी आबादी वाला देश बनाता है। उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे कई ग्रामीण राज्यों में ये जनसंख्या घनत्व राष्ट्रीय औसत से कहीं बहुत अधिक है। दिल्ली एवं मुम्बई जैसे शहरों में यह जनसंख्या धनत्व 20,000 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी से भी अधिक है।
देश की धनी आबादी कोविद -19 के सामुदायिक प्रसार के लिए भारत को दुनिया का सबसे संवेदनशील स्थान बनाता है। अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को देखते हुए सामुदयिक प्रसारण की स्थिति में भारत के लिए कोरोनो वायरस से संक्रमित बड़ी संख्या में रोगियों का इलाज करना कहीं से भी संभव नहीं हो सकता है। इसलिए आवश्यक है कि नागरिकों के सुरक्षा हेतु इस वायरस के सामुदायिक प्रसार को ही रोक दिया जाए! इस उद्देश्य की प्राप्ति का सबसे कारगर तरीका लॉकडॉउन ही है।
बुनियादी स्वास्थ्य सुविधा संबन्धित ढांचे के मोर्चे पर भारत आज भी विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुशंसित अधिकांश मापदंडों पर बहुत पीछे है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वे 2019 के हिसाब से देश में सरकारी एलोपैथिक डॉक्टरों की कुल संख्या 1,16,757 है जो देश के लगभग 135 करोड़ भारतीयों के स्वास्थ्य संबन्धित सेवा के लिए उपलब्ध हैं। इस तरह कुल 11,562 नागरिकों के लिए सिर्फ एक एलोपैथिक डॉक्टर उपलब्ध है! बिहार जैसे राज्य में कुल 28,391 नागरिकों पर सिर्फ एक डॉक्टर ही उपलब्ध है। हालाँकि दिल्ली जैसे शहरी राज्य में ये अनुपात घटकर लगभग 2200 नागरिकों पर एक डॉक्टर हो जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपने मानकों के अधार पर सामान्य परिस्थिति में कुल 1000 नागरिकों पर 1 डॉक्टर की संख्या को न्यूनतम बताया है। अतः निःसदेश कहा जा सकता है कि देश में एलोपैथिक डॉक्टरों की कमी है जो कोरोना जैसे वायरस से संक्रमित रोगियों का इलाज कर सकें।
आज देश में ना सिर्फ एलोपैथिक डॉक्टरों की ही कमी नहीं बल्कि जब बात स्वास्थ्य सुविधाओं की आती है तो स्थिति और भी खराब दिखाई देती है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वे 2019 के हिसाब से आज देश में कुल 1000 नागरिकों पर सिर्फ 0.52 सरकारी अस्पताल के बिस्तर उपलब्ध हैं! मूलभूत सुविधा के मामले में भी देश में सामान्य स्थिति के लिए भी पर्याप्त सुविधाएँ नहीं है। बात जब वेंटिलेटर, आईसीयू और अन्य अत्याधुनिक सुविधाओं की आती है तो स्थिति और भी खराब है। यहाँ तक की महामारी की इस विकट समय में हम टेस्टिंग किट एव स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा हेतु आवश्यक सामान तक उपलब्ध करा पाने में असमर्थ हैं। अतः स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति को देखते हुए स्पष्ट रुप से कहा जा सकता है कि देश में कोरोना के जितन कम मरीज होंगे उतना ही ठीक है।
आज देश में कोरोना से संक्रमित रोगियों की कुल संख्या 33000 से अधिक है। हालाँकि इस आपदा की स्थिति में सुखद बात ये है कि अब तक कुल मरीजों में से 25.5% मरीज स्वस्थ हो चुके हैं। और हर रोज मरीजों के ठीक होने का प्रतिशत बढ़ रहा है। साथ ही प्रति टेस्ट रोगियों की संख्या में भी सुधार देखा गया है। अब 100 टेस्ट में सिर्फ 4 लोग ही कोरोना से संक्रमित पाए जा रहे हैं। हालाँकि कुल मरीजों में 3.26% मरीजों की मृत्यु भी हो रही है।
वायरस के संक्रमण के मामले में यदि भारत की तुलना दुनिया के औसत व अन्य देशों से की जाए तो भारत की स्थिति दुनिया के अधिकतर देशों से बहुत ही बेहतर है। आज भारत में संक्रमण की दर 23.23 मरीज प्रति मिलियन है जबकि दुनिया का ये औसत 415 मरीज प्रति मिलियन है। वहीं मृत्यु की दर भारत में सिर्फ 0.79 व्यक्ति प्रति मिलियन है जबकि दुनिया का औसत 29.4 व्यक्ति प्रति मिलियन है। साथ ही यदि भारत की तुलना दुनिया के सबसे बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं वाले देशों से करें तो भी भारत की स्थिति पूरी दुनिया एवं इन विकसित देशों की तुलना में कहीं बहुत ही बेहतर है। आज अमेरीका में मरीजों की मृत्यु का औसत 177.8 व्यक्ति प्रति मिलियन है तो यूनाइटेड किंगडम में ये औसत 325.5 व्यक्ति प्रति मिलियन है। इटली में 453 व्यक्ति प्रति मिलियन है तो स्पेन में ये औसत 507.93 व्यक्ति प्रति मिलियन है। वहीं चीन का औसत 3.34 व्यक्ति प्रति मिलियन है तो वहीं फ्रांस का औसत 353.भीत प्रति मिलियन है।
एक अनुमान है यदि भारत में लॉकडॉउन नहीं लगाया गया होता तो भारत में घनी आबादी के कारण कोरोना वायरस सामुदयिक प्रसार होता और मरीजों के दोगुना होने गति तीन दिन से भी कम होता। भारत में जिस दिन लॉकडॉउन लगा उस दिन कोरोना के मरीजों की संख्या हर तीसरे दिन दोगुना हो रही थी। यदि आगे भी भी दोगुना होने की दर यही रहती तो भी 29 अप्रैल तक भारत में कम से कम 27,36,128 मरीज होते जो वर्तमान के 33,062 मरीजों की तुलना में 8275% अधिक होते। आज जबकि भारत में सरकारी अस्पतालों में कुल बिस्तरों की संख्या 70,2000 से कुछ ज्यादा है। तो इस स्थिति में तकरीबन 20 लाख मरीजों को स्वास्थ्य सुविधा दे पाना असंभव था। अतः लॉकडॉउन का निर्यण सवर्था ही उचित है।
हालाँकि यदि पिछले कुछ दिनों के आँकड़ों की तुलना करने पर यह स्पष्ट दिखता है कि अभी भारत में कोरोना मामले 11.5 दिनों में 6.22% की दर से बढ़ रहे हैं जो लॉकडॉउन वाले दिन की तुलना बहुत ही बेहतर स्थिति है। हालाँकि कुछ राज्यों में वर्तमान की स्थिति चिन्ताजनक है। महाराष्ट्र, गुजरात व पश्चिम बंगाल में मरीजों की संख्या दस या दस से कम दिनों में दोगुना हो रही है। साथ ही इन राज्यों में मरीजों के स्वस्थ होने की दर बहुत ही कम है तथा प्रतिदिन बड़ी संख्या में मरीज मिल रहे हैं। पश्चिम बंगाल में जनसंख्या के अनुपात में टेस्टिंग भी बहुत कम हो रही है।
वर्तमान में दिल्ली में स्वस्थ होने वाले मरीजों की संख्या बढ़ी है। कुल मरीजों में से 31.8% मरीज स्वस्थ हो रहे हैं। परन्तु पिछले 5 दिनों में तकरीबन 200 नए मरीज रोज मिल रहे हैं साथ ही कुल टेस्टों में तकरीबन 8% नए मरीज बढ़ रहे हैं। साथ ही मध्यप्रदेश की स्थिति भी चिन्तनीय है। हालाँकि उत्तर प्रदेश, आंध्रप्रदेश, राजस्थान व तमिलनाडु स्थिति में सकारात्मक सुधार हुआ है और तेलंगाना में अगले दो-तीन हफ्ते में नए मरीजों की संख्या शून्य तक पहुँच सकती है।
देश के चार राज्य गोवा, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर व त्रिपुरा में वर्तमान में कोरोना संक्रमण का एक भी मामला नहीं है। साथ ही देश के लगभग आधे अधिक जिले या कोरोना मुक्त हो चुके हैं या फिर कोरोना का कोई संक्रमण हुआ ही नहीं। साथ ही लगभग 81% मामले देश के सिर्फ सात राज्यों में हैं जिनमें से कई राज्यों में गुणात्मक सुधार हुआ है। अब इस बात की संभावना है कि 3 मई के बाद देश के उन राज्यों व जिलों में लॉकडॉउन से छूट मिले ताकि उन राज्यों में आर्थिक गतिविधियों को गति दी जा सके क्योंकि अप्रैल महीने में जीएसटी के कलेक्शन में तकरीबन 60% की गिरावट हुई है।
राजीव उपाध्याय
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