गहराता भारतीय अर्थतंत्र

आईएमएफ के आर्थिक पूर्वानुमान के अनुसार भारतीय अर्थव्यस्था में 2022 में 7.4% व 2023 में 6.1% की दर से वृद्धि होगी। हालाँकि इस बात की पूरी संभावना है आईएमएफ अपने अगले पूर्वानुमान में इस वृद्धि की दर को मानसून में आए अनियमितता को जगह देते हुए रीवाइज किया जाएगा और ये दरें कुछ कम हों। ये वृद्धि दरें ऐसे समय में और भी महत्त्वपूर्ण हो जाती हैं जब भारत के लगभग सभी पड़ोसी देश आर्थिक समस्याओं में घिरे हैं किन्तु तब भी भारतीय अर्थव्यवस्था इन कठिन परिस्थितियों में अपनी आर्थिक गतिविधि को बहुत प्रभावित होने से बचा पाने में सक्षम रहेगी।

पड़ोसी देश श्रीलंका पहले ही डिफॉल्ट कर चुका है और वहाँ की आर्थिक परिस्थितियों को ठीक करने की दिशा में भारत सबसे बड़ा सहयोगी सिद्ध हुआ है। पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है और बहुत कठिन शर्तों पर बाह्य आर्थिक सहयोग मिलने की संभावना बन पा रही है। बाँग्लादेश अपने बाह्य भुगतान के लिए आईएमएफ से सहयोग की माँग कर रहा है। म्यामांर, मालदीव व नेपाल की आर्थिक स्थिति भी बहुत स्थिर नहीं है। कुल मिलाकर सार्क में भारत व भुटान को छोड़कर सभी देश आर्थिक परेशानियों से घिरे हैं।

यदि संल्गन ग्राफ को देखा जाए तो स्पष्ट हो जाता है ना सिर्फ सार्क बल्कि एशिया व पैसिफिक की लगभग हर बड़ी अर्थव्यवस्था (चीन, जापान, दक्षिण कोरिया व ऑस्ट्रेलिया सहित) बहुत मुश्किल से 5% की वृद्धि को बनाए रख पाने में सक्षम हो पा रही होगीं। किन्तु फिर भी इसी समयावधि में भारत अपनी अर्थव्यवस्था में वृद्धि की दर को बहुत अधिक गिरने से बचाए रखने की स्थिति में रहेगा। यह भारत के आर्थिक ढ़ाँचे की बढ़ती गहराई, स्थिरता व संभावनाओं को बता रहा है। यह समस्त समाजवादी व मार्क्सवादी आर्थिक विचारों द्वारा उठाए गए प्रश्नों को गलत बताते हुए पिछले तीस वर्षों में भारत द्वारा अपनाए गए मिश्रित अर्थव्यवस्था की छोटी सफलता किन्तु प्रभावशाली प्रदर्शन को दर्शा रहा है।

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