गलत कौन? कंगना राणावत या कुलविन्दर कौर?

अभिनेत्री कंगना राणावत अभी सम्पन्न हुए 2024 के आम चुनाव में हिमाचल प्रदेश के मंडी से सांसद का चुनाव जीता है। पिछले दिनों कंगना राणावत जब चंडीगढ़ एयरपोर्ट से फ्लाइट पकड़ने के लिए चेक-इन कर रही थीं उसी समय चंडीगढ़ एयरपोर्ट पर पोस्टेड सीआईएसएफ की सुरक्षाकर्मी कुलविंदर कौर ने कंगना राणावत को थप्पड़ मार दिया। कुलविंदर कौर ने उस दुर्व्यवहार को सही बताते हुए इस कारण कंगना राणावत का किसान आन्दोलन में बैठे लोगों के प्रति किया नकारात्मक टिप्पणी से आहत होना बताया।

जबसे कुलविंदर कौर ने कंगना राणावत को थप्पड़ लगाया है वो सोशल मीडिया पर एक वर्ग द्वारा हीरो के रूप में प्रदर्शित की जा रही है; तो वहीं दूसरा वर्ग उसे गलत बता रहा है।

तो क्या कुलविंदर कौर सचमुच हीरो है?

या वह गलत है?

निःसंदेह कुलविंदर कौर अपराधी है। वो हीरो हो ही नहीं सकती। बिना बहुत विचार किए उसे (सीआईएसएफ कर्मी को) सलाखों के पीछे डाल देना चाहिए। उसके बाद इस विषय में गहन जांच होनी चाहिए कि उसने ऐसा क्यों किया? वो लड़की सीआईएसएफ की सुरक्षाकर्मी है। उसका काम ये नहीं है। उसका काम निर्धारित है। हर कर्मचारी का अपने कार्यस्थल पर काम निर्धारित होता है। एक सीआईएसएफ की सुरक्षाकर्मी का कार्य सुरक्षा देना है; हमला करना नहीं।

कुछ लोग आज कंगना राणावत को थप्पड़ मारने की घटना को सही बता रहे हैं या इस पर चटकारे लगा रहे हैं। कुछ लोग उस मूर्ख लड़की को साहसी, क्रान्तिकारी और न जाने क्या-क्या बता रहे हैं! वे सभी लोग जो इस अनुशासनहीनता की घटना को साहसी व क्रान्तिकारी बता रहे हैं, वे अप्रत्यक्ष रूप से महात्मा गांधी, इन्दिरा गांधी, बेअंत सिंह व राजीव गांधी सहित दुनिया में होने वाली सभी हत्याओं को सही ठहरा रहे हैं! वे हर हिंसा को सही ठहरा रहे हैं। क्या उनके इन मानकों के आधार पर एक सुन्दर व बेहतर समाज की परिकल्पना की जा सकती है? या उनका स्वप्न्न एक अराजक समाज का है?

आज ये घटना कंगना राणावत के खिलाफ हुई है। लेकिन यदि इसे यहीं बहुत मजबूती के साथ नहीं रोका गया तो कल ऐसी ही घटनाएँ राहुल गांधी और हर किसी के खिलाफ होने लगेंगी।

विद्वतजन (लेखक, प्रोफेसर व समाजसेवक इत्यादि) उस मूर्ख लड़की के अपराध को क्रान्ति साबित करने के लिए तर्क पर तर्क दे रहे हैं। इन्हीं बुद्धि-पिचास विद्वानों का धड़ा इतिहास व स्वाधीनता संग्राम का उदाहरण देकर इसे क्रान्ति साबित करने की कोशिश कर रहा है तो दूसरा धड़ा ये साबित करने पर उतारूँ हैं कि कंगना ने किसान आन्दोलन के बारे में जो कहा उससे उस लड़की के मन ठेस लगा और ये थप्पड़ उसकी प्रतिक्रिया मात्र भर है; और कुछ नहीं! इस अराजक समूह का संयुक्त प्रयास ये कि ये लड़की लोगों की नजरों में क्रान्तिकारी भी लगे और परिस्थितियों की मारी भी ताकि हर अवस्था में उन्हें और अराजकता फैलाना का मौका मिले!

ठीक है! एकदम ठीक बात कि उस लड़की ने कुछ भी गलत नहीं किया!

आप विद्वान हैं तो एकदम ही ठीक बात कह रहे होंगे। आपकी बात मान लेते हैं!

आपके ही तर्क के आधार पर क्या भारतीय सेना को बलात्कारी कहने के लिए भारतीय सेना को प्रतिक्रिया स्वरूप आप ही जैसे विद्वान क्रान्तिकारी कन्हैया कुमार की पिटाई या इनकाउंटर कर देना चाहिए?

आपकी विद्वत सभा ने भारतीय सेनाओं का बारम्बार अपमान किया है तो क्या आपकी विद्वत सभा को उनके पसंदीदा चीन के तियानमेन चौक पर चढ़ाकर टैंकों से रौद देना चाहिए?

तो आप इसकी मांग कब कर रहे हैं?

क्या भारत को आपके इस इस कबीलाई न्याय की प्रतीक्षा करनी चाहिए?

नहीं। बिल्कुल नहीं। यह उचित नहीं होगा।

जब भारतीय व्यवस्था ने कन्हैया कुमार और कम्युनिस्ट पार्टियों पर कोई कार्यवाई नहीं हुई तो कंगना राणावत को उसके किसान आन्दोलन विरोधी बयान के लिए सजा कैसे दिया जा सकता है? विदित हो कि कम्युनिस्ट पार्टी सीपीएम ने 1962 के चीन हमले का समर्थन किया था और इसके अनेकों सदस्स्य चीन के हमले की योजना को पहले से जानते थे फिर भी उनके इस राष्ट्र-विरोधी अपराध के लिए इन पार्टियों पर पं नेहरु के साम्यवाद के प्रति अत्यधिक झुकाव के कारण कभी भी बैन नहीं लगा! जबकि सीपीएम का ये कार्य राष्ट्र के विरूद्ध था!

मूलतः नकारात्मकता फैलाने वाले ये सभी लोग किसी के भी हितैषी नहीं हैं। इन नकारात्मक लोगों को बस चटकारे से मतलब है! चाहें इस चटकारे की मूल्य सामने वाला या समाज अपने जीवन से ही क्यों ना चुका रहा हो!

जो लोग कुलविंदर कौर की सराहना कर रहे हैं वे मूलतः भारत के विरूद्ध ही हैं ऐसा बिना लाग-लपेट कहा जा सकता है क्योंकि अन्ततः वे भारत व भारतीय व्यवस्था के विरूद्ध एक भाव बना तो रहे ही हैं। किन्तु ये इतना सीधा भी नहीं है। अधिकतर लोग जो कुलविंदर कौर का समर्थन कर रहे हैं वे भारत के विरोध में नहीं है। वे उसका समर्थन सिर्फ इसलिए कर रहे हैं क्योंकि कंगना राणावत भारतीय जनता पार्टी की सांसद है। और पिछले 8-10 सालों में ये चलन चल पड़ा है कि यदि भाजपा या नरेन्द्र मोदी का विरोध करने के लिए भारत का भी विरोध करना पड़े तो पीछे नहीं हटना है!

कुछ लोगों को लग सकता है ये घटना इतनी महत्त्वपूर्ण नहीं कि इस ओर बहुत ध्यान दिया जाए लेकिन अराजकता का प्रारम्भ-बिन्दु कुछ ऐसा ही होता है और राष्ट्र के लिए आवश्यक है कि वो ऐसी घटनाओं को बहुत गंभीरता से ले।

राजीव उपाध्याय

No comments:

Post a Comment