हर किसी की अपनी ही एक दुनिया होती है। एक ऐसी दुनिया जो सिर्फ उसकी होती है और शायद ही कोई उस दुनिया को जानता है। इस तरह लोगों का एक दूसरे से जान-पहचान होते हुए भी अंजान होते हैं। हर किसी को लगता तो है कि वे बहुत कुछ जानते हैं एक दूसरे के बारे में पर वो बहुत कुछ, बस बहुत कुछ ही होता है पूरा शायद कभी नहीं होता और इस तरह से कहीं ना कहीं एक दूसरे से अंजान ही रह जाते हैं और अक्सर ये अंजान शक्स जो इन्सान के भीतर चुपचाप पड़ा रहता है वो इतना महत्त्वपूर्ण होता है कि वो आपको बिना बताए ही आप पर हुकूमत करता रहता है और इस तरह से आदमी वो नहीं होता है जो वो जानता है। और जो होता है उस तक आदमी पहुँच नहीं पाता।
तुम्हारी दुनिया का
दिखावा कुछ और है
मेरी दुनिया के
उसूल कुछ और
फ़र्क बस इतना है
कि तुम
तुम नहीं होते
और मैं होता हूँ कोई और।
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राजीव उपाध्याय
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