कि टूटा हुआ मक़ान

ये दिल है 
कि टूटा हुआ मक़ान? 

बुर्ज़ें सारी, 
ढ़ह गई हैं 
पर, 
खिड़कियाँ बंद हैं। 

घर में कोई 
दरवाजा नहीं, 
शायद कोई आता जाता नहीं। 

अज़ीब 
विरानगी है; 
इस घर में, 
आदमी तो रहता 
पर आदमी नहीं। 

ये दिल है 
कि टूटा हुआ मक़ान? 
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राजीव उपाध्याय

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