कमजोर बुनियाद इमारत की

जब बुनियाद ही कमजोर थी
उस इमारत की
तो गिरना ही था उसे
हवा-पानी से।
वैसे भी
कोई कहाँ टिक सका है
हवा-पानी में।

इमारत गिरनी थी
गिर ही गई
पर वजह कुछ और थी,
वैसे तो खड़ी रह सकती थी
कुछ सदी और भी।
पर कागज के इक टूकड़े में
ज़ोर इतना था
कि लिखावट उसकी
कहर बनकर गिरी,
कि जिसकी ठोकरों से
इमारत भरभराकर ढ़ह गई।
जिन्दा तो रहना चाहती थी
पर किसी के
चाहत की आग में
वो अनचाही ही
धू-धू कर जल गई॥
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