रवीश भाई, कन्हैया और मेरा सपना

कल रवीश भाई सपने में आए थे और कहने लगे, ‘वत्स उठो, जागो, कन्हैया को गरीब मानो और जब तक सभी उसे गरीब ना मान लें तब तक सबको मनाते रहो।’ 

मैं ठहरा मोटी बुद्धि का आदमी और वो भी नवाज शरीफ के देहाती औरत के जैसा। मगज में कुछ घुसा ही नहीं तो समझ कहाँ से आता। पहले तो यकीन ही नहीं हुआ मगर रवीश भाई तो साक्षात सामने खड़े मुस्करा रहे थे। झक मार कर यकीन हो चला तो मैंने सिर खुजलाते हुए पूछ मारा, ‘खैर ऊ तो ठीक है भाईजान! हम मजूर आदमी हैं आप जो कहेंगे सब करेंगे परन्तु मन में कुछ सवाल है।’ 
मेरी बात सुनते ही रवीश भाई के चेहरे एक विशेष तरह की हँसी फैल गई। उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, ‘पूछो वत्स!’ 

उनकी आँखों से एक तेज निकल रहा था। खैर उनकी यह बात सुनकर मेरे मन का डर खत्म हुआ और मैंने भी पूछ डाला, ‘यदि इसी बीच चुनाव खत्म हो गए और लोगों कन्हैया को गरीब नहीं माना तो क्या करना होगा?’ 

ये सवाल सूनते ही रवीश भाई ठठाकर हँसे और बड़े अपनत्व से आसमान को निहारते हुए बोले, 'भाई, राजकुमार है अपना कन्हैया कुमार! लोग मानेंगे क्यों नहीं?’ उनका आवाज में कोई विशेष तत्व घुल गया था जैसे कोई वितरागी संत हो और कहने लगे, ‘आजतक इस देश में किसी ने राजकुमारों की बातों को नकारा है क्या कभी? तुम पूरे मन से प्रयास करो। मैं थोड़ा व्यस्त हूँ। अभी प्रधानमंत्री का इंटरव्यू लेने जा रहा हूँ। वापस आकर बात करता हूँ।' 

मैं फिर से हैरान हो गया कि रवीश भाई ये क्या कह रहे हैं? तो फिर से आश्चर्य और संशय का भाव लिए हुए पूछा,'किस देश के प्रधानमंत्री का इंटरव्यू लेने जा रहे हैं?' 

रवीश भइया पुनः संत भाव से मुस्कराए; कुछ देर तक मुझे देखते रहे और फिर उठकर मेरे चेहरे पर एक धीरे से थाप दिया जैसे खुशा होकर पिता देता है। मुझे ऐसा लगा कि जैसे मेरा चेहरा किसी के प्रेम में सराबोर हो जलमग्न हो चुका है। कि तभी अचानक आँख खुली तो देखा कि मेरे पडोसी का जर्मन शेफर्ड अपने जिह्वा से अपने अनुराग का इजहार कर रहा है। मैं अब ज्यादा ही हैरान था। सिर खुजलाकर याद करने की कोशिश कर रहा था कि अभी-अभी जो मेरे था हुआ उसमे सच कितना है? अन्ततः हारकर मैंने भी अपने सिर खुजलाना छोड जर्मन शैफर्ड के सिर को सहलाना शुरू कर दिया।

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राजीव उपाध्याय

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