जालियाँवाला बाग: नमन! शहीदों को

जालियाँवाला बाग
नमन! उन शहीदों को जिन्हें जालियाँवाला बाग में इसलिए शहीद होना पड़ा क्योंकि वे एक काले कानून का विरोध कर रहे थे जो उनसे उनका सामान्य मौलिक हक तक छीन रहा था। वे सभी हुतात्मा विरोध कर रहे थे उस धोखा का जो ब्रिटिश साम्राज्य ने भारत के साथ किया था जिसके तहत बेहतर शासन-प्रशासन व्यवस्था के बदले प्रथम विश्वयुद्ध में भारतीय सैनिक ब्रिटिश साम्राज्य के लिए लड़े थे। वे सभी काल गाल में समा गए क्योंकि वे अपने मानवाधिकारों की माँग कर रहे थे। 

जनरल डॉयर ने ये सोचकर जालियाँवाला बाग में गोली चलाने का आदेश दिया था कि उसके आदेश से ब्रिटिश साम्राज्य की दीवारें मजबूत होंगी। उसे कहाँ पता था कि ये गोलियाँ हर हिन्दुस्तानी को गहरी नींद से झकझोर कर जगा देगीं। वो पंजाब की क्रान्तिकारी आवाज को अपनी जालियाँवाला बाग की बर्बरता से सदा के लिए दबाना चाहता था पर उसने भारत नाम की हाथी को जगा दिया जिसने उस साम्राज्य को ही खत्म कर दिया जिसने भारत को हर स्तर पर कमजोर किया चाहे बात अर्थव्यवस्था की हो या फिर शिक्षा एवं विचार की।

आज सौ साल पूरे हुए हैं जालियाँवाला बाग की उस बर्बर घटना को घटे जो बताता है कि इस देश की आजादी कितनी कीमतों को चुकाने के बाद मिला है। जाने कितने ही गुमनाम चेहरे जिन्हें ना कोई जानता है और ना ही याद करता है वे इस देश की नींव में शामिल हैं। हमें याद रखना है कि ये आजादी इतनी सस्ती नहीं है कि इसे किसी भी छोटी चाह के लिए खो दें….…………………।

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