जरूरी नहीं हर बात दिल तक ही पहुँचे
कुछ तो कहन आँखों का भी होता है।
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मेरे बारे में भी कभी तो सोचा करो
बस सोचकर ही रो बैठोगे तुम।
मगरूर हैं तो क्या हुआ, इजहार-ए-इश्क तो है
मुहब्बत के सफर में हाल-ए-दिल देखा नहीं जाता।
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है मुमकिन कि तुम मुझसे ख़फ़ा हो जाओ।
जब बात कहूँ दिल की तो बेवफ़ा हो जाओ॥
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अब तक अभी घर मैं अपने लौटा नहीं हूँ
मुलाकात वो तुझसे वहीं ठहर हुई है।
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राजीव उपाध्याय
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