समय की ही कहानी कह रहे हैं सभी
पशु, आदमी या हो फिर कोई चींटी।
हेर-फेर है किरदारों में बस
कि आइने की अराइश से
बह रही हैं स्वर लहरियाँ कई
जो होकर गुजरती हैं कानों से सभी।
उन स्वरों से धुन कई हैं निकलतीं
जो कहानी बनकर हैं पिघलतीं
और इस तरह हर आँख में
नया बिम्ब हैं भरतीं।
समय की ही कहानी कह रहे हैं सभी॥
पर जैसे ही उस पार जाकर समय के
लगाकर हाथ छूते हैं पूछते हैं
कि भरभरा कर ढह जाती
उँची बड़ी प्राचीर समय की।
समय की ही कहानी कह रहे हैं सभी॥
कि शून्य ही शून्य हो जाता है हर हर तरफ
जो धीरे-धीरे मुझको ही
मुझ पर आच्छादित कर जाता है
समय इस तरह मेरी कहानी बनकर मुझे दुहराता है।
समय की ही कहानी कह रहे हैं सभी॥
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