लॉकडॉउन: एक जरूरी कदम

बहुत सारे अर्थ शास्त्री प्रश्न कर रहे हैं कि भारत ने बिना सोचे-समझे व तैयारी किए ही पूरे देश में लॉकडॉउन लागू कर दिया। बहुत सारे राजनैतिक व्यक्ति लॉकडॉउन के उपयोगिता पर ही प्रश्न खड़े कर रहे हैं! साथ ही बहुत सारे विद्वान और लेखक लॉकडॉउन के खिलाफ लेख लिख रहे हैं जिसमें अनेक तरह के प्रश्न सरकार और समाज दोनों से ही पूछ रहे हैं। कुछ विद्वान तो इस लॉकडॉउन को भविष्य की इमर्जेंसी का रिहर्सल तक बता रहे हैं! हालाँकि इमर्जेंसी जैसी बातों में किसी को विश्वास नहीं है। शायद प्रश्न पूछने वालों को भी नहीं!

ये बात सही है कि लॉकडॉउन के कारण करोड़ों लोगों को तकलीफों का सामना करना पड़ रहा है। लाखों लोग अपने घर परिवार से दूर अंजान शहरों में कुछ घरों में तो कुछ सड़कों पर बन्द पड़े हैं। लाखों या फिर करोंड़ों मजदूर शहरों में भूख व अन्य परेशानियों का सामना कर रहे हैं और सरकारों व दूसरों की सहायता पर जीवित रहने के लिए निर्भर हैं। हालाँकि अब धीरे-धीरे सरकारें लोगों को उनके घर पहुँचाने का प्रयास कर रही हैं। परन्तु यदि उनको लॉकडॉउन के दौरान ही कोरोना प्रभावित शहरों से उनके घरों को जाने देने दिया जाता तो हर गाँव के कोरोना से संक्रमित होने की संभावना थी। इसलिए न चाहकर भी बाकी लोगों को कोरोना के संक्रमण से बचाने के लिए ये ऐतिहात जरूरी था।


वे सभी व्यक्ति जो लॉकडॉउन की उपयोगिता पर ये प्रश्न कर रहे हैं कि सरकार ने बिना तैयारी के ही पूरे देश में लॉकडॉउन लागू कर दिया उनसे सिर्फ एक प्रश्न है। क्या आपको लगता है कि कोई ऐसी स्थिति संभव है जहाँ सभी एक ही सूर में कहें कि हाँ हम सभी लॉकडॉउन के लिए तैयार हैं? निःसंदेह हर व्यक्ति को किसी भी निर्णय के लिए सहमत कर पाना सामान्यतः संभव नहीं है। प्रशासकों को हानि-लाभ के आधार पर निर्णय लेना होता है। लाभ हो या ना हो परन्तु हानि नहीं होना चाहिए और जन हानि तो बिल्कुल ही नहीं! लोकतंत्र में लोक ही तो सबसे महत्त्वपूर्ण है। वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए निःसंदेह ये कहा जा सकता है कि राष्ट्र को तुरंत बंद न करने से होने वाली हानि बंद करने की तुलना में कहीं अधिक थी।

जिस दिन भारत का लॉकडॉउन हुआ उस दिन देश में कोरोना वायरस संक्रमण के केसों के दोगुना होने में तीन दिन का समय लग रहा था और आज दस दिन से अधिक का समय लग रहा है। यदि वृद्धि दर के हिसाब से देखा जाए तो तकरीबन तेरह दिन में ये संख्या दोगुना हो रही है। भारत की तुलना दुनिया के बाकी देशों से करने पर स्पष्ट हो जाता है कि भारत का लॉकडॉउन का निर्णय एक सही और उचित निर्णय साबित हुआ है।


उपरोक्त ग्राफ ना सिर्फ स्वयं ही इन प्रश्नों का उत्तर दे रहा है बल्कि लॉकडॉउन के गलत बताने वाले सभी दावों को खारिज भी कर रहा है। आज देश में हर कारनों से होने वाली मृत्यु की कुल संख्या में तकरीबन 20-30% की गिरावट आई है और संभावना है कि अगले कुछ दिनों में कोरोना के वृद्धि का कर्व समतल हो जाएगा। और इन सबमें लॉकडॉउन का महत्त्वपूर्ण योगदान है। हालाँकि आर्थिक रूप से, लॉकडाउन भारत और दुनिया के लिए बहुत महंगा साबित होने वाला है और पहली तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था में संकुचन की संभावना बहुत अधिक है।

राजीव उपाध्याय

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