प्रवासी यात्रियों के घर वापस लौटने के खतरे

migrant workers returning home प्रवासी यात्रियों के घर वापस लौटने के खतरे देश में कोरोना का पहला मामला 30 जनवरी 2020 को सामने आया। तब से लेकर 82 दिन बाद तक 10 मई 2020 तक उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में कोरोना संक्रमण का एक भी मामला सामने नहीं आया था। हालाँकि सूचना है कि होम क्वारंटाइन के दौरान तीन लोगों की मृत्यु हुई थी। परन्तु 11 मई को बलिया में कोरोना संक्रमण का पहला मामला सामने आया। ये व्यक्ति प्रवासी मजदूर है जो उत्तर प्रदेश के बाहर से वापस बलिया आया है। 11 मई को इस व्यक्ति के कोरोना से संक्रमित होने की पुष्टि होने के बाद जिला प्रशासन ने उस व्यक्ति के साथ यात्रा करनेवाले उसके सभी साथियों को का परीक्षण कराया तो उसके सभी साथी कोरोना से संक्रमित पाए गए। और इस तरह बलिया में 15 मई को कोरोना के दस मामले हो गए और बलिया रेड जोन घोषित हो गया।

ये कहानी सिर्फ बलिया की ही नहीं है बल्कि देश उन सभी जिलों की है जहाँ देश के विभिन्न हिस्सों से प्रवासी मजदूर वापस आए हैं। परन्तु ये मजदूर अकेले नहीं आए हैं बल्कि अपने साथ उन जिलों में कोरोना वायरस भी लेकर आए हैं। उत्तर प्रदेश के देवरिया, कुशीनगर व ललितपुर जैसे अनेक जिलों की भी यही कहानी है। प्रवासियों के वापस आने के बाद इन जिलों में कोरोना के मरीज मिलने लगे हैं। बिहार, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, राजस्थान व असम आदि राज्यों में भी प्रवासी मजदूरों के वापस आने के बाद कोरोना वायरस के मामलों में अचानक ही वृद्धि होने लगी है।

ऐसा नहीं है कि प्रवासी मजदूरों को वापस उनके घर नहीं आने देना चाहिए। बल्कि जो वापस आना चाहता है उसे वापस आने की सुविधा देनी ही चाहिए परन्तु बिना पर्याप्त परीक्षण के उन प्रवासी यात्रियों को सिर्फ थर्मल टेस्टिंग के आधार पर ही घर जाने देने का निर्णय बहुत ही खतरनाक है। कम से कम उन सभी यात्रियों का सही तरीके से परीक्षण करना ही चाहिए जो रेड ज़ोन से वापस आ रहे हैं नहीं तो यदि इन ग्रामीण क्षेत्रों में इस वायरस का संक्रमण बढ़ा तो स्थिति विस्फोटक हो जाएगी और भारत के लिए उन सभी लोगों को समुचित स्वास्थ्य सुविधा दे पाना असंभव होगा।

राजीव उपाध्याय

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