हिंसा धीरे-धीरे भारतीय समाज में प्रतिक्रिया व असहमति के संप्रेषण का मुख्य व स्थाई भाव बनता जा रहा है। कभी धर्म के नाम पर, कभी कानून के विरोध में, कभी किसी योजना के ना पर तो कभी किसी भ्रष्ट नेता के भ्रष्टाचार के समर्थन में सिर्फ देश को हिंसा के आग में ही नहीं बल्कि युवाओं को एक अंधेरी गुफा में भी ढकेला जा रहा है। इससे ना तो देश का भला होनेवाला है और ना ही उन युवाओं का उकसाए जाने के बाद हिंसा का माध्यम बनते हैं। लेकिन कहते हैं ना कि किसी के हानि में किसी ना किसी का लाभ छुपा होता है और इन हिंसक घटनाओं में तो हितधारकों का दोहरा लाभ छुपा होता है। इन हिंसक घटनाओं का दोहरा लाभ उन दलों व संस्थाओं को मिलता है जो युवाओं का उकसाकर इस हिंसा को फैलाते हैं। उन दलों व संस्थाओं को ढेर सारी चर्चाओं व सहानुभूति के साथ-साथ बड़ी संख्या में स्थाई कार्यकर्ता जरूर मिल जाएंगे।
विरोध करिए; ये केवल आपका अधिकार ही नहीं वरन आवश्यक भी है क्योंकि यही लोकतंत्र का सौंदर्य है किन्तु इस लोकतांत्रिक विरोध को मध्यकालीन युद्ध बनाते हुए उसे बंजर मत बनाइए।
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