राम को आईएसआई मार्का

राम को आईएसआई मार्का Ram Satireइस बार के दशहरा में वो हुआ जो कभी भी नहीं हुआ था। जिसका सपना लोग सत्तर साल से देख रहे थे वो इस बार ‘पहली बार’ हो ही गया। कहने का मतलब है कि कई सौ साल पर लगने वाले सूर्य और चन्द्र ग्रहण की तरह। हजारों सालों में पहली बार आनेवाली दैवीय मूहुर्त की दीपावली की रात की तरह। ये सब कुछ इस तरह से चमत्कारी तरीके से हुआ कि चमत्कार ने अपनी परिभाषा बदल ली है और हैरानी ने हैरान होने का पैमाना। इस बार के दशहरा अलकायदा के बम ब्लॉस्ट की तरह था जिसने भारत के संस्कृति और इतिहास का कायाकल्प ही कर के रख दिया है। इस सब को देखकर मूँगेरीलाल तक हैरान और परेशान हो सदमे में चले गए हैं कि उनके हसीन सपनों के पँख इतने कमजोर थे! खैर लाल बुझक्कड़ का समाचार इस तरह से है।

गाँधी जी के बरक्स कौन?

आजतक गाँधी जी के बरक्स जाने कितने लोगों को खडा करने की कोशिश की गई है परन्तु कोई भी गाँधी जी के बरक्स खडा नहीं हो पाया और आगे कोई खड़ा हो पाएगा कि नहीं, कहना मुश्किल है। जहाँ तक कुछ ऐतिहासिक चरित्र जैसे कि लाल बहादुर शास्त्री जी, सुभाष चन्द्र बोस जी या फिर भगत सिंह जी का सवाल है तो उन्होंने अपने जीवनकाल में स्वयं ही कभी गाँधी जी के बरक्स खड़ा होने का प्रयास नहीं किया। उनके मन में गाँधी जी के प्रति ना तो कोई प्रतिद्वन्दिता थी और ना ही हीनता का भाव। अतः आज इनको एक दूसरे के बरक्स खड़ा करने का कोई औचित्य ही नहीं है। कम से कम शास्त्री जी को उनके बरक्स खड़ा तो बिल्कुल ही नहीं करना चाहिए क्योंकि शास्त्री जी का गाँधी जी के विचारों के प्रति समर्पण कभी संदेह के घेरे में नहीं रहा है।