किसी भी प्रोडक्ट की खरीददार की नजरों में स्वीकार्यता में उस प्रोडक्ट की उच्च क्वॉलिटी और उसकी आकर्षक पैकेजिंग का बहुत बडा योगदान होता है। किसी भी मार्केटिंग प्रोफेशनल के लिए ये कहीं से भी संभव नहीं है वो प्रोडक्ट को सिर्फ पैकेजिंग (इन्टैंजिबिलिटी) या सिर्फ प्रोडक्ट की क्वॉलिटी (टैंजिबिलिटी) के सहारे हिट करा ले। उसे दोनों ही चाहिए और वो भी सही अनुपात में। मतलब टैंजिबिलिटी और इन्टैंजिबिलिटी का संतुलन होना ही चाहिए।
चुनावी राजनीति कहीं से भी ऊपर के संतुलन से अलग नहीं है। बल्कि चुनावी राजनीति में प्रोडक्ट की क्वॉलिटी और पैकेजिंग का एक सामान्य प्रोडक्ट की तुलना में बहुत ज्यादा योगदान होता है और ये काम एक सामान्य सामान बेचने की तुलना में कहीं बहुत ही कठिन काम है। राजनीति में प्रोडक्ट की क्वॉलिटी विकास के पैमाने पर मापी जाती है; तो पैकेजिंग को भावनात्मक अपील से परखा जाता है। जिस भी राजनैतिक दल ने इस सन्तुलन को हाशिल करने में सफलता प्राप्त की है, वह हिट है और आगे भी हिट रहेगा। भाजपा ने यही किया और परिणाम सबके सामने है। प्रचण्ड बहुमत। विकास उसक्के प्रोडक्ट का गुणवत्त्ता था तो राष्ट्रीयता का भाव उसकी पैकेजिंग का पैमाना। (इसे आप अपने बनाए राष्ट्रवाद से सीमित परिभाषा से ना जोडें)।




