अब तक जेट एयरवेज के सभी ऋणदाता स्टेट बैंक के नेतृत्व में इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) के तहत नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) के बाहर ग्राउंडेड एयरलाइंस से जुड़े इन्सॉल्वेंसी संकट के सामाधान व पुनर्जीवित करने के लिए सभी संभावित विकल्पों की खोज कर रहे थे। हालाँकि ये सभी प्रयास असफल होते दिख रहे हैं। आज के दिनांक में कर्मचारियों के वेतन, ऑपरेटिंग लेनदारों और ॠणदाताओं के बकाया सहित जेट एयरवेज का कुल कर्ज लगभग ₹ 15,000 करोड़ है। उम्मीद यह है कि यदि यह मामला एनसीएलटी में जाता है, तो ॠणदाताओं को उनके कुल देय ₹ 8,400 करोड़ में से बहुत थोड़ा ही रिकवर हो पाएगा ।
WTO Questions India’s Plan to Revive Farm Sector
It seems that the USA, Australia, European Union and other nations are considering the purposed ‘transport and marketing assistance’ for agriculture as an export subsidy and these countries are of view that after the implementation of this plan, India will breach the allowed ‘product specific’ ceiling of 5% of the value of production. These countries think that India’s plan is a trade-distorting subsidy with goal to dump its surplus stock in foreign markets. They fear that it will have negative impact on competitors in international market. So they want every detail of this purposed plan as the WTO has strict rules about the size and nature of payments.
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यकीन
दूर-दूर तक
आदमी ऐसा कोई दिखता नहीं
कि कर लें यकीन
उस पर एक ही बार में।
यकीन मगर करना भी है
तुझ पर भी
और मुझ पर भी।
ऐसा नहीं
कि यूँ करके सिर्फ मुझसे ही है
हर आदमी ही इत्तेफाकन बारहा है।
The Irony of Being Mamata Banerjee

घुटन से झुकती जाती है
घुटन से झुकती जाती है सर्द रातों में हवा जब
बूँदें हौले से आकर तुम्हारी सूरज रेशमी कर जाती हैं।
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जब इश्क था तो बेवफा, दोनों हुए होंगे।
कोई जल के रह गया, कोई बुझ के रह गया।
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तमाम उम्र हमने गुजारी तंग-ए-बदहाली संग
शौक अब लुफ़्त की आदत पड़ती नहीं॥
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कुछ तो कहन आँखों का भी होता है
जरूरी नहीं हर बात दिल तक ही पहुँचे
कुछ तो कहन आँखों का भी होता है।
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मेरे बारे में भी कभी तो सोचा करो
बस सोचकर ही रो बैठोगे तुम।
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कितने पथिक
मैं पथ बन
हर पल खड़ा हूँ
कितने पथिक
आए-चले गए।
कुछ देर तक ठहरे
कुछ गहरे कहीं तक उतरे
और पल में कुछ
कहानी नई कर गुजरे।
कितने पथिक
आए-चले गए॥
यूँ कर ना यकीन कर
इक आईना जो देखा है आँखों में तेरी
बरक्स जिसके दूसरा कोई मिलता नहीं।
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मेरे कहे का यूँ कर ना यकीन कर
मतलब मेरे कहने का कुछ और था।
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नमन! विनायक दामोदर सावरकर
हमने धीरे-धीरे एक ऐसा समाज बना दिया है जो आज एक बाइनरी में सोचने को मजबूर है। वो हर चीज को तेरा-मेरा के दृष्टिकोण से ही देखने का आदी हो चला है। सामाजिक विषय हो या फिर राजनैतिक, हर आदमी किसी ना किसी पक्ष में खड़ा है और उसी के हिसाब से अपने सुख और दुख, अपने लाभ और हानि और यहाँ तक की साझे इतिहास तक का उसी पैमाने पर आकलन कर रहा है। इतिहास का कौन सा चरित्र मेरा है और कौन सा तेरा है, पहले से ही तय करके बैठा है और उसी के हिसाब से उसकी संवेदनाएँ जगती हैं। पता नहीं इसे क्या कहें? उच्च राजनैतिक अवेयरनेस या वैचारिक रतौंधी?
जवाहरलाल नेहरू: भारतीय लोकतंत्र के नींव का पत्थर

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू एक राजनेता थे। एक स्टेससमैन के रूप में वे अपनी समझ और सामर्थ्य के अनुसार अपने समकालीन परिस्थितियों में जो कुछ भी देशहित में हो सकता था, करने का प्रयास किया। उनके कुछ निर्णयों से देश को दूरगामी लाभ मिला तो कुछ से दूरगामी नुकसान भी। और इसमें कहीं से कुछ भी असामान्य नहीं है। पूरी दुनिया के इतिहास में एक भी ऐसा राजनेता नहीं मिलेगा जिसके सारे ही निर्णय समय की कसौटी पर सही साबित हुए हों। ये संभव ही नहीं है। सबसे आश्चर्यजनक बात ये होती है कि इस बात को हर राजनेता जानता है फिर भी उसे निर्णय लेना होता है और वो लेता है। नेहरू कहीं भी इससे भिन्न नहीं थे।
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