
One has Right to Protest but Peacefully

चौकीदार
संकरी गलियों से गुजरते हुए
धीमे और सधे कदमों से
लहरायी थी चौकीदार ने लालटेन अपनी
और कहा था , “सब कुछ ठीक है!"
बैठी बंद जाली के पीछे औरत एक
नहीं था पास जिसके बेचने को कुछ भी;
रुककर दरवाजे पर उसके
चौकीदार चिल्लाया जोर से, “सब कुछ ठीक है!”
ग़रीबी
आह! नहीं चाहती हो तुम
कि डरी हुई हो
ग़रीबी से तुम;
घिसे जूतों में नहीं जाना चाहती हो बाज़ार तुम
और नहीं चाहती हो लौटना उसी पुराने कपड़े में।
मेरी प्रेयसी! पसन्द नहीं है हमें,
कि दिखें हमें उस हाल में, है जो पसंद कुबेरों को;
तंगहाली हमारी।
राम को आईएसआई मार्का

गाँधी जी के बरक्स कौन?

दोस्ती दुश्मनी का क्या?
दोस्ती दुश्मनी का क्या?
कारोबार है ये।
कभी सुबह कभी शाम
तलबगार है ये॥
कि रिसालों से टपकती है ये
कि कहानियों में बहती है ये।
कभी सितमगर है ये
और मददगार भी है ये॥
भारत में मंदी की दस्तक

उसके कई तलबगार हुए
कभी हम सौदा-ए-बाज़ार हुए
कभी हम आदमी बीमार हुए
और जो रहा बाकी बचा-खुचा
उसके कई तलबगार हुए॥
सितम भी यहाँ ढाए जाते हैं
रहनुमाई की तरह
पैर काबे में है
और जिन्दगी कसाई की तरह॥
रमन मैग्सेसे और रवीश कुमार
एक ही थैले में भरे आँसू और मुस्कान।
- निदा फाज़ली
निदा फाज़ली ने इन दो पँक्तियों में क्या कुछ नहीं कह दिया है! कुछ भी तो बाकी नहीं है! जीवन का सार है। शायद सारा। घटना एक ही होती है और हर आदमी अपने-अपने हिसाब से उसे अच्छा या बुरा कहता है और इस तरह से उस घटना के अच्छा या बुरा होने को लेकर सोचना ही मुश्किल हो जाता है। क्या नैतिकता, क्या तर्क! किसी भी सांचे में डालना या कहीं कसना मुमकिन ही नहीं दिखता।
रवीश कुमार को रमन मैग्सेसे पुरस्कार क्या मिला, चारों तरफ भावनाओं का ज्वार उफान मार रहा है! यह रवीश कुमार के काम को अंतराराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृति मिली है, जहाँ रवीश कुमार को इसके लिए सिर्फ बधाई मिलनी चाहिए। बस! वहीं कुछ लोग खुशी में पागल हुए जा रहे हैं तो कुछ लोग गम दीवाने!
वो जगह
ढूँढ रहा हूँ जाने कब से
धुँध में प्रकाश में
कि सिरा कोई थाम लूँ
जो लेकर मुझे उस ओर चले
जाकर जिधर
संशय सारे मिट जाते हैं
और उत्तर हर सवाल का
सांसों में बस जाते हैं।
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