संकरी गलियों से गुजरते हुए
धीमे और सधे कदमों से
लहरायी थी चौकीदार ने लालटेन अपनी
और कहा था , “सब कुछ ठीक है!"
बैठी बंद जाली के पीछे औरत एक
नहीं था पास जिसके बेचने को कुछ भी;
रुककर दरवाजे पर उसके
चौकीदार चिल्लाया जोर से, “सब कुछ ठीक है!”