क्योंकि मैं रुक ना सकी मृत्यु के लिए

क्योंकि
मैं रुक ना सकी
मृत्यु के लिए
दयालुता से मगर
इन्तजार उसने मेरा किया
और रूकी जब 
तो हम और अमरत्व
बस रह गए।

धीरे-धीरे बढ़ चले 
सफर पर हम 
जल्दबाजी नहीं उसे। 
सब कुछ छोड़ दिया मैंने 
अपनी मेहनत और आराम भी। 
शिष्टता उसकी ऐसी थी!

One has Right to Protest but Peacefully

Every citizen or group has right to disagree with the government in a democracy if they find that their rights have been compromised by mala fide intentions. This is their fundamental duty to oppose to any such oppression. For that they can take any progressive route of protest but it must be peaceful in all ways without any question and condition. The history tells when the protests are peaceful; those often result into better conditions for the protesters and sometimes create history.

चौकीदार

संकरी गलियों से गुजरते हुए
धीमे और सधे कदमों से
लहरायी थी चौकीदार ने लालटेन अपनी 
और कहा था , “सब कुछ ठीक है!"

बैठी बंद जाली के पीछे औरत एक
नहीं था पास जिसके बेचने को कुछ भी;
रुककर दरवाजे पर उसके 
चौकीदार चिल्लाया जोर से, “सब कुछ ठीक है!”

ग़रीबी

आह! नहीं चाहती हो तुम
कि डरी हुई हो 
ग़रीबी से तुम;
घिसे जूतों में नहीं जाना चाहती हो बाज़ार तुम
और नहीं चाहती हो लौटना उसी पुराने कपड़े में। 

मेरी प्रेयसी! पसन्द नहीं है हमें,
कि दिखें हमें उस हाल में, है जो पसंद कुबेरों को;
तंगहाली हमारी। 

राम को आईएसआई मार्का

राम को आईएसआई मार्का Ram Satireइस बार के दशहरा में वो हुआ जो कभी भी नहीं हुआ था। जिसका सपना लोग सत्तर साल से देख रहे थे वो इस बार ‘पहली बार’ हो ही गया। कहने का मतलब है कि कई सौ साल पर लगने वाले सूर्य और चन्द्र ग्रहण की तरह। हजारों सालों में पहली बार आनेवाली दैवीय मूहुर्त की दीपावली की रात की तरह। ये सब कुछ इस तरह से चमत्कारी तरीके से हुआ कि चमत्कार ने अपनी परिभाषा बदल ली है और हैरानी ने हैरान होने का पैमाना। इस बार के दशहरा अलकायदा के बम ब्लॉस्ट की तरह था जिसने भारत के संस्कृति और इतिहास का कायाकल्प ही कर के रख दिया है। इस सब को देखकर मूँगेरीलाल तक हैरान और परेशान हो सदमे में चले गए हैं कि उनके हसीन सपनों के पँख इतने कमजोर थे! खैर लाल बुझक्कड़ का समाचार इस तरह से है।

गाँधी जी के बरक्स कौन?

आजतक गाँधी जी के बरक्स जाने कितने लोगों को खडा करने की कोशिश की गई है परन्तु कोई भी गाँधी जी के बरक्स खडा नहीं हो पाया और आगे कोई खड़ा हो पाएगा कि नहीं, कहना मुश्किल है। जहाँ तक कुछ ऐतिहासिक चरित्र जैसे कि लाल बहादुर शास्त्री जी, सुभाष चन्द्र बोस जी या फिर भगत सिंह जी का सवाल है तो उन्होंने अपने जीवनकाल में स्वयं ही कभी गाँधी जी के बरक्स खड़ा होने का प्रयास नहीं किया। उनके मन में गाँधी जी के प्रति ना तो कोई प्रतिद्वन्दिता थी और ना ही हीनता का भाव। अतः आज इनको एक दूसरे के बरक्स खड़ा करने का कोई औचित्य ही नहीं है। कम से कम शास्त्री जी को उनके बरक्स खड़ा तो बिल्कुल ही नहीं करना चाहिए क्योंकि शास्त्री जी का गाँधी जी के विचारों के प्रति समर्पण कभी संदेह के घेरे में नहीं रहा है।

दोस्ती दुश्मनी का क्या?

दोस्ती दुश्मनी का क्या? 
कारोबार है ये। 
कभी सुबह कभी शाम 
तलबगार है ये॥ 

कि रिसालों से टपकती है ये 
कि कहानियों में बहती है ये। 
कभी सितमगर है ये 
और मददगार भी है ये॥

भारत में मंदी की दस्तक

भारत में मंदी की दस्तक Slowdown in Indian economyभारत में आर्थिक मंदी ने 2015 के अंत से ही दस्तक देना शुरू कर दिया था और इस ओर किसी का भी ध्यान नहीं गया। हालाँकि 2014 में रघुराम राजन ने वित्तीय मंदी की संभावना व्यक्त की थी। 2015 के बाद से ही व्यापार चक्र एवं वित्तीय चक्र सहित विभिन्न लीड इन्डीकेटर स्पष्ट तो नहीं परन्तु संभावित मंदी की ओर इंगित करना शुरू कर दिया था जो दिख नहीं रहा था परन्तु उस मंदी के संकेत अनेक स्तरों जैसे की खपत, प्राइवेट निवेश और जीडीपी की कमी इत्यादि के रूप में अब दिखाई देना शुरू कर दिया है। परन्तु उम्मीद है कि ये मंदी थोड़े समय के लिए ही रहेगी।

उसके कई तलबगार हुए

कभी हम सौदा-ए-बाज़ार हुए 
कभी हम आदमी बीमार हुए 
और जो रहा बाकी बचा-खुचा 
उसके कई तलबगार हुए॥ 

सितम भी यहाँ ढाए जाते हैं 
रहनुमाई की तरह 
पैर काबे में है 
और जिन्दगी कसाई की तरह॥

रमन मैग्सेसे और रवीश कुमार

रमन मैग्सेसे, रवीश कुमार, Ravish Kumar, Raman Magsaysay Awardसीधा-साधा डाकिया जादू करे महान 
एक ही थैले में भरे आँसू और मुस्कान। 
- निदा फाज़ली 

निदा फाज़ली ने इन दो पँक्तियों में क्या कुछ नहीं कह दिया है! कुछ भी तो बाकी नहीं है! जीवन का सार है। शायद सारा। घटना एक ही होती है और हर आदमी अपने-अपने हिसाब से उसे अच्छा या बुरा कहता है और इस तरह से उस घटना के अच्छा या बुरा होने को लेकर सोचना ही मुश्किल हो जाता है। क्या नैतिकता, क्या तर्क! किसी भी सांचे में डालना या कहीं कसना मुमकिन ही नहीं दिखता। 

रवीश कुमार को रमन मैग्सेसे पुरस्कार क्या मिला, चारों तरफ भावनाओं का ज्वार उफान मार रहा है! यह रवीश कुमार के काम को अंतराराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृति मिली है, जहाँ रवीश कुमार को इसके लिए सिर्फ बधाई मिलनी चाहिए। बस! वहीं कुछ लोग खुशी में पागल हुए जा रहे हैं तो कुछ लोग गम दीवाने!