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कोरोना, गोमूत्र और उपहास का कॉकटेल

कोरोना, गोमूत्र और उपहास का कॉकटेलपिछले कुछ दिनों से जबसे भारत में कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ने लगी है, गोमूत्र पुनः चर्चा में आ गया है। कुछ लोग गोमूत्र सेवन को कोरोना से बचाव का उपाय बताते हुए गोमूत्र पार्टी का आयोजन कर रहे हैं। कुछ इस दावे का उपहास उड़ा रहे हैं। वहीं पर कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इन दावों के उपहास के आड़ में उन प्रतीकों का भी अपमान कर रहे हैं जिनसे हिन्दू समाज की भावनाएँ जुड़ी हुई हैं।

ज्योतिरादित्य सिंधिया और भाजपा: रिस्क और रिटर्न का ट्रेड ऑफ

अंततः माधवराव सिंधिया के बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने महीनों की कयास के बाद कॉग्रेस को ना सिर्फ अलविदा कह दिया है बल्कि अपने लिए भाजपा के रुप में नया घर भी चुन लिया है। मैंने शुरुआत में ज्योतिरादित्य को माधवराव का बेटा इसलिए कहा कि किञ्चितरुप से 18 साल के अपने राजनैतिक यात्रा के बाद भी अब तक ज्योतिरादित्य माधवराव के कद तले ही खड़े थे। शायद ज्योतिरादित्य का ये निर्णय भविष्य में ज्योतिरादित्य को अपनी पहचान बनाने में मदद करे। हालाँकि कि भाजपा जैसी कैडर वाली पार्टी में उनके लिए रास्ता आसान नहीं होगा। किसी भी कैडर वाली पार्टी का एक निश्चित संस्कार और शब्दावली होती है जो अक्सर बाहरी व्यक्ति के लिए एक अबूझ पहेली सी होती है। ज्योतिरादित्य को इस पहेली को ना सिर्फ समझना होगा बल्कि इस पहेली को और भी रहस्यमय बनाना होगा।

कोरोना रूपी मानवीय त्रासदी

कहते हैं कि जब आप दूसरों के लिए गढ्ढा खोदते हैं तो उस गढ्ढे में आपके गिरने की संभावना भी लगातार बनी रहती है। यह कंटीले तार पर चलने जैसा है। आप चाहें ना चाहें परन्तु आपके पाँव उन कँटीले तारों से जख्मी हो ही जाते हैं। कोरोना वायरस से पीड़ित आज के चीन की स्थिति भी एक ऐसे ही व्यक्ति की हो गई जो दूसरों के लिए स्वयं के द्वारा बिछाए गए कंटीले तारों से जख्मी हो गया हो और जख्म की दवा भी दिखाई नहीं दे रही हो। आज वुहान शहर और हुबेई प्रांत इस समय दुनिया की सबसे बडी त्रासदी से गुजर रहे हैं।

अंतरराष्ट्रीय मीडिया के अनुसार हुबेई के किसी बायोकेमिकल लैबोरेट्री में चीनी वैज्ञानिक केमिकल वेपन के रूप मे उपयोग में लाए जा सकने लायक वायरसों की खोज एवं प्रयोग हो रहा था। उसी क्रम में हुएह लीकेज के कारण ये वायरस कंट्रोल्ड इंवायरमेंट से निकलकर मानवीय संपर्क में आ गया और जब वैज्ञानिकों को इसकी खबर लगी ये कोरोना वायरस बेतरतीब तरीक़े से फैल शुरू कर दिया था।

बौद्धिक हिप्पोक्रेसी एवं हिन्दुओं में जागता विक्टिम भाव

बौद्धिक हिप्पोक्रेसी और हिन्दुओं के अन्दर पैदा होता विक्टिम भावशरजील इमाम, गोपाल और उनके बाद कपिल ने अनेकों सवालों को जन्म दिया है। परन्तु इसी शोर के बीच लोहरदगा में 23 जनवरी को नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) का समर्थन करने वाली तिरंगा रैली पर समाचार खबरों के हिसाब से मुस्लिम इलाके से गुजरते समय भीड़ पथराव कर देती है जिसमें अनेक लोग जख्मी हो जाते हैं। उसके पश्चात लोहरदगा में कर्फ्यू लगाना पड़ता है। उसी पथराव में चोट लगने के कारण नीरज प्रजापति नाम के एक व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। गिने-चुने कुछ समाचार माध्यमों को छोड़कर इस खबर को कहीं कोने में दबा दिया जाता है। 

नागरिकता अधिनियम पर हंगामा है क्यों बरपा?

नागरिकता अधिनियम, Citizen Amendment Act 2019, CAA, CABभारतीय संसद और राष्ट्रपति ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 को संस्तुति दी है परन्तु इस अधिनियम को लेकर पूरे देश में हंगामा हो रहा है। देश के विश्वविद्यालयों से लेकर आम जनता तक सड़क पर आ गई और विरोध अब पूर्णतया हिंसक हो चुका है। इसलिए यह सवाल लाजमी हो जाता है कि नागरिकता अधिनियम पर हंगामा है क्यों बरपा? 

नागरिकता अधिनियम 1955 में सामान्य स्थिति में भारत में नागरिकता मिलने के ४ निम्नलिखित प्रकार वर्णित हैं। 
१. जन्म से (By Birth) 
२. वंशागत (By Descent) 
३. पंजीकरण (By Registration) 
४. प्राकृतीकरण (By Naturalization) 

हालांकि एक पाँचवाँ प्रकार भी है नागरिकता को लेकर परन्तु यह तब लागू होता है जब भारत किसी भूभाग को अपनी सीमाओं में अधिग्रहित करता है। अधिग्रहण के फलस्वरूप उस भूभाग में रहने वाले सभी निवासियों प्राकृतिक रुप से नागरिकता मिल जाती है।

One has Right to Protest but Peacefully

Every citizen or group has right to disagree with the government in a democracy if they find that their rights have been compromised by mala fide intentions. This is their fundamental duty to oppose to any such oppression. For that they can take any progressive route of protest but it must be peaceful in all ways without any question and condition. The history tells when the protests are peaceful; those often result into better conditions for the protesters and sometimes create history.

The Irony of Being Mamata Banerjee

There is so much fury about the protesting doctors. Everyone is out to educate them, ignoring everything relating to this protest. Before anything is said fact must be presented. While treatment, an old man of the age of more than 80 years died few days back. This made the relatives of the patient furious and they termed this death as medical negligence. Previously there had been a lot of reports about medical negligence though most of these never were confirmed or backed by a proper enquiry (this does not make doctors sacred cow). However, in this case too without any enquiry, it was termed as medical negligence by a mob. And surprising fact is that none is asking any real questions to none, doctors and hospital administration, the judges in the mob and the West Bengal government. This is the irony. 

नमन! विनायक दामोदर सावरकर

हमने धीरे-धीरे एक ऐसा समाज बना दिया है जो आज एक बाइनरी में सोचने को मजबूर है। वो हर चीज को तेरा-मेरा के दृष्टिकोण से ही देखने का आदी हो चला है। सामाजिक विषय हो या फिर राजनैतिक, हर आदमी किसी ना किसी पक्ष में खड़ा है और उसी के हिसाब से अपने सुख और दुख, अपने लाभ और हानि और यहाँ तक की साझे इतिहास तक का उसी पैमाने पर आकलन कर रहा है। इतिहास का कौन सा चरित्र मेरा है और कौन सा तेरा है, पहले से ही तय करके बैठा है और उसी के हिसाब से उसकी संवेदनाएँ जगती हैं। पता नहीं इसे क्या कहें? उच्च राजनैतिक अवेयरनेस या वैचारिक रतौंधी?

जवाहरलाल नेहरू: भारतीय लोकतंत्र के नींव का पत्थर

जब-जब इस देश में गाँधी, नेहरू, पटेल, अम्बेडकर और दीन दयाल उपाध्याय का नाम लोगों के जुबान पर आता है तो उसके पीछे का कारण कहीं ना कहीं विमर्श ही होता है। कुछ लोग इनके सिद्धान्तों को इस देश के लिए अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण बताते हैं तो कुछ लोग इन सभी के दिए सिद्धान्तों का खण्डन करते हैं। दोनों ही स्थिति स्वागत योग्य है और अच्छा लगता है इस देश इस विमर्श की प्रवृत्ति पर। परन्तु जब इन महान विभूतियों पर बेवजह लांछन लगाए जाते हैं तो दुख होता है। आप इन पर विमर्श और तर्क-वितर्क करिए; बहुत जरूरी है परन्तु राष्ट्र-निर्माण में इनके योगदानों को नकारिए मत। इनका योगदान आपके और मेरी अकेली समझ से कहीं बहुत बड़ा है। खैर यहाँ नेहरू के बारे में। इस छोटे से लेख में नेहरू पर बात करना संभव तो नहीं है परन्तु फिर भी प्रयास रहेगा। 

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू एक राजनेता थे। एक स्टेससमैन के रूप में वे अपनी समझ और सामर्थ्य के अनुसार अपने समकालीन परिस्थितियों में जो कुछ भी देशहित में हो सकता था, करने का प्रयास किया। उनके कुछ निर्णयों से देश को दूरगामी लाभ मिला तो कुछ से दूरगामी नुकसान भी। और इसमें कहीं से कुछ भी असामान्य नहीं है। पूरी दुनिया के इतिहास में एक भी ऐसा राजनेता नहीं मिलेगा जिसके सारे ही निर्णय समय की कसौटी पर सही साबित हुए हों। ये संभव ही नहीं है। सबसे आश्चर्यजनक बात ये होती है कि इस बात को हर राजनेता जानता है फिर भी उसे निर्णय लेना होता है और वो लेता है। नेहरू कहीं भी इससे भिन्न नहीं थे। 

विकास और राष्ट्रीयता का भाव, भाजपा का प्रचण्ड बहुमत

किसी भी प्रोडक्ट की खरीददार की नजरों में स्वीकार्यता में उस प्रोडक्ट की उच्च क्वॉलिटी और उसकी आकर्षक पैकेजिंग का बहुत बडा योगदान होता है। किसी भी मार्केटिंग प्रोफेशनल के लिए ये कहीं से भी संभव नहीं है वो प्रोडक्ट को सिर्फ पैकेजिंग (इन्टैंजिबिलिटी) या सिर्फ प्रोडक्ट की क्वॉलिटी (टैंजिबिलिटी) के सहारे हिट करा ले। उसे दोनों ही चाहिए और वो भी सही अनुपात में। मतलब टैंजिबिलिटी और इन्टैंजिबिलिटी का संतुलन होना ही चाहिए। 

चुनावी राजनीति कहीं से भी ऊपर के संतुलन से अलग नहीं है। बल्कि चुनावी राजनीति में प्रोडक्ट की क्वॉलिटी और पैकेजिंग का एक सामान्य प्रोडक्ट की तुलना में बहुत ज्यादा योगदान होता है और ये काम एक सामान्य सामान बेचने की तुलना में कहीं बहुत ही कठिन काम है। राजनीति में प्रोडक्ट की क्वॉलिटी विकास के पैमाने पर मापी जाती है; तो पैकेजिंग को भावनात्मक अपील से परखा जाता है। जिस भी राजनैतिक दल ने इस सन्तुलन को हाशिल करने में सफलता प्राप्त की है, वह हिट है और आगे भी हिट रहेगा। भाजपा ने यही किया और परिणाम सबके सामने है। प्रचण्ड बहुमत। विकास उसक्के प्रोडक्ट का गुणवत्त्ता था तो राष्ट्रीयता का भाव उसकी पैकेजिंग का पैमाना। (इसे आप अपने बनाए राष्ट्रवाद से सीमित परिभाषा से ना जोडें)। 

सोशल मीडिया के वीरों को एक पत्र

हे भारत के वीरों!

आप थमकर जरा सोच लें फिर अजहर मसूद के बीमार या मरने पर खुशियाँ जाहिर करें। ध्यान से सुनिए। ना ही वो बीमार है और ना ही वो मरा है। वह सुरक्षित किसी सेफ हाउस में अगले कदमों की तैयारी कर रहा है। ये अफवाह सिर्फ इसलिए फैलाई जा रही है ताकि कल यदि भारत युद्ध खत्म करने के बदले उसकी माँग करे तो पाकिस्तान कह सके कि वह तो मर चुका है। पुलवामा का हमला कोई छोटी घटना है। हालाँकि आप समझेंगे नहीं फिर भी निवेदन है कि आप तनिक सोच भी लिया करें। युद्ध सिर्फ सीमाओं पर ही नहीं लड़ा जाता है बल्कि यह चौतरफा मोर्चों पर लड़ा जाता है।

India in Modern Warfare with Pakistan

In modern warfare before firing the first bullet you have to win the battle. Bullets are fired to bring the land into your dominion. So in all ways India has to win the economic warfare first then bullets can be fired if necessary. But the problem is that China would not allow Pakistan to fail as failure of Pakistan would be a disaster for Chinese economy (refer to CPEC). So those who think that Atom bomb and Rafael can only do the job they must rethink. 

Since Mr. Modi became Prime Minister, Indian government is focusing on barricading Pakistan at economic level and breaking the string of pearls in Indian Ocean created by China to barricade. Pakistan and China both understand it very well. That is the reason why China will keep on protecting Azhar Masood. If Azhar Masood is declared as an international terrorist, both the countries know that India will move the resolution to declare Pakistan a terrorist state. And if India is successful in doing so, it would a blow for China from which it will take decade to recover and Pakistan may break into many parts which is already on brink.

अब फिर से रोना-धोना होगा

आखिरकार बुद्धिजीवी अब अपने-अपने घरों से बाहर निकलने लगे हैं। सारे के सारे कश्मीर और कश्मीरियों की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। उन्हें लग रहा है कि इस देश में कश्मीरी सुरक्षित नहीं हैं। कुछ छिटपुट घटनाओं को सार्वभौमिक बताकर पूरे देश को ही कटघरे में खडा किया जा रहा है। कुछ मानवाधिकारों का रोना रो रहे हैं तो कुछ शांति का पाठ पढा रहे हैं। कुछ को इन शहीदों में भी हिंदू-मुस्लिम भी दिखाई देने लगा है। जाति के लिए रोने वाले भी इस दुर्घटना को मनुवादी सिद्ध करने का प्रयास कर रहे हैं। जबकि इनमें से अधिकतर के मुँह से इस त्रासदी और आतंकीवादियों के विरूद्ध एक शब्द भी बाहर नहीं निकला। हाँ इनमे से कुछ ने दो रोटी अधिक जरूर खाई होगी। 

It’s Hypocrisy that Encourages Communalism in India

Media reports clearly suggest that 86 families belonging to Dalit community are threatening to accept Islam if it can save their houses. These reports on the very first instance seem that this threat is nothing but tactics to gain media attention so that they can raise their issue to broader public so that they can gain some public sympathy and may be immediate relief. These people have been living on unauthorized area for decades. This is now being treated as encroachment by authorities, so they trying to vacate the land so that can build road. It is clearly a case of illegal encroachment. But this needs humanitarian approach. Though, not right precedence.

कोटि कोटि नमन कि आज हम आज़ाद हैं

आज शहीद-ए-आज़म भगत सिंह जी के शहादत पर कुछ महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ रहीं हैं इस राष्ट्र की, इस समाज की। आज विद्वतजनों ने बहुत सारी पुरानी पड़ चुकीं परिभाषाओं एवं विमर्श के झाड़-फोछकर नये युग की नयी आवश्यकताओं के हिसाब से परिभाषित कर दिया है। उनके अथक प्रयासों के फलस्वरूप नास्तिकता, आस्तिकता, राष्ट्रवाद, जाति, धर्मनिरपेक्षता एवं सामाजिक समरसता जैसे महत्त्वपूर्ण विषयों पर बेहद ऊँचे दर्जे का ज्ञान संवर्धन हुआ है (वैसे कुछ समय पहले तक इनके लिए आस्तिकता, राष्ट्रवाद और जाति जैसे जुमले बजबजाती नाली से निकलते दुर्गंध के समान हुआ करता था)। यह पुरा राष्ट्र उनका आभारी है और साहित्य एवं विमर्श का तो पुनर्जन्म ही हो गया। वैसे भी तकरीबन पिछले सौ सालों से इन्होंने साहित्य के लिए बहुत कुछ किया है विचारधारा के तिनके के सहारे इस संसार के बड़वानल में। आपका शौर्य एवं पराक्रम देखकर शहीद-ए-आज़म भी उपर वाले को धन्यवाद कहते होंगे कि हे भगवन! (माफी चाहता हूँ। आप तो नास्तिक थे) अच्छा किया जो इन महावीरों के युग में पैदा नहीं किया नहीं तो हमें प्रमाणपत्र देने के लिए ये जाने क्या-क्या हमसे करवाते।
कोटि कोटि नमन आप सभी को कि आज हम आज़ाद हैं।

बुद्धिजीवी का विमर्श

लोगों को (मुख्य रूप से बुद्धिजीवियों को) ये कहते हुए अक्सर सुनता हूँ कि वक्त बहुत खराब हो गया है। विमर्श के लिए कोई जगह शेष नहीं बची है। संक्रमण काल है। गुजरे जमाने को तो नहीं जानता पर जरुर 12 -15 साल से इन महान विचारकों और बुद्धिजीवियों को देख और पढ़ रहा हूँ। वैसे मेरे पिता श्री इनको बुद्धि-पशु कहना ज्यादा उचित मानते हैं। इन्होंने विमर्श के नाम पर एक दूसरे की या तो बड़ाई की है (प्रगतिशील भाषा में खुजलाना कहते हैं) या फिर पुरी ताकत लगाई उसे गलत और पद दलित बनाने में और इस दौरान अगर किसी ने गलती से विमर्श के विषय में चर्चा मात्र भी किया है तो एकजुट होकर झट से उसको समेटने में लग गये हैं। अगर सामने वाला उनकी तथा कथित महान विचारधारा का नहीं है (जो अक्सर वामपन्थ के नाम से जाना जाता था, अब तो खैर वाम पन्थ फैशन मात्र है जो अक्सर पेज थ्री की पार्टियों में ही दिखाई देता है) तो उसका चरित्र हनन करने में थोड़ा भी हिचकते नहीं हैं। क्या विमर्श में विरोधी विचार धारा के लिए स्थान नहीं होता है? अगर नहीं तो विमर्श किस बात का? क्या सिर्फ इस बात का कि तुम्हारे शर्ट के अच्छा मेरा कुरता है? क्योंकि ये आम आदमी, नहीं क्षमा चाहता हूँ अब तो आम आदमी पर आम आदमी पार्टी का कापीराइट है तो सामान्य जन का पहनावा है। सामान्य जन कहने में भी खतरा है दक्षिणपन्थी कहलाने का। खैर आज विमर्श कुछ इस तरह से होता है कि एक बुद्धिजीवी दूसरे बुद्धिजीवी से कहता है –
“बेवकूफों के शहर में क्यों रहता है
खुद को बेवकूफ क्यों समझता है?
पलट कर देख जमाना सारा चोर है
बस तू ही अकेला मूँहजोर है।”
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राजीव उपाध्याय

धर्म का खेला

कुछ लोग बड़े ही चिन्तित हैं कि भारत में इस्लाम और ईसायत पर हमला हो रहा है क्योंकि कुछ हिन्दूवादी संगठनों ने कुछ मुस्लमानों को तथाकथित रूप से हिन्दू बनाया था आगरा में और अलीगढ़ में तैयारी है कुछ और मुस्लमानों और ईसाइयों को हिन्दू बनाने की। तो कुछ लोग खुश हैं कि चलो कालचक्र का पहिया घूमना शुरू तो हुआ। माफी चाहूंगा पर आप दोनों ही गलत हैं। थोड़ा नहीं बहुत गलत हैं और आप लोगों के इस सोच या कर्म से ना तो राम खुश हो सकते हैं ना ही अल्लाह या ना ही गाड। आप सभी महाविद्वानों से नम्र निवेदन है (शायद आपके के अनुसार मैं इस काबिल नहीं हूँ) आप अपने-अपने धर्मों में पाए जाने वाली विसंगतियों एवं कुप्रथाओं की ओर ध्यान दें नहीं तो आप महाविद्वान लोग अपने-अपने धर्मों नारकीय बना देगें (खैर आपने बहुत हद तक बना दिया है धर्म और मानवता दोनों को) और लोग आपको धन्यवाद बोलकर नया रास्ता ले लेंगे पर तब आपकी बन्दूकें और धन सब धरी की धरी रह जाएंगी।

पता नहीं कौन सा जिहाद ये कि बच्चे छोटे भी काफ़िर हो गए।

माफ करना बच्चों तुम्हारे पिता और दादा कुछ ज्यादे ही सयाने हो गये हैं कि बन्दूक थामकर मजहब बचाने चले हैं………….।
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राजीव उपाध्याय

The Big Brand of Secularism

Voters in this country in this season of elections are very confused. Basically they have been entrusted to decide as who is secular and who is communal. Precisely, the main task is to decide who is communal. However secularism has always been a funning subject in our country. It has been so funny that even comedy shows would fail to entertain the public as this concept can do! 

At present there are three big brands in market of secularism and communal-ism; namely Rahula Gandhi, Mulayam Singh and Narendra Modi. The pioneer brand these days is Mr. Rahul Gandhi and he is very much worried about influence of ISI on Muslim youth of Muzzfarnagar and he finds RSS and BJP to be the reason for the same. 

NOTA Can Never be a Right Option

These days, intellectuals are so fond of None of the Above (NOTA). They are praising it as panacea of all the problems of Indian political system. NOTA is being said to be an effective tool in the hands of common man of the country to find the solution to non-performing governments and public representatives. But as a citizen of this country, I have different opinion altogether. It is a negative idea itself for a democracy and any democracy cannot afford to be empowered on the foundations of negative ideas. There is need for affirmative ideas and actions to make the government and public representatives more responsive towards people.

Special Court for Women and Children

The way crime against women and children are on rise, time has come that we must need a special court and legal system for women and children which can fast track such cases. Only fast and tough stances can bring changes in our society. And it should be turned into reality else it will be too late. 

We have centuries’ old legal system which can suit to the fast changing society which is being caused by so any factors. We have to abandon the old one and put completely new system that can fit into the new value system that is shaping our country. The new sets of values and ethics are replacing the old ones and it has to be accepted and acknowledged by our society and the government. At India Gate I am seeing a completely different world and yes, this would be the future. So should be accepted than denied the right place in society. That is the only way we can deal with the new sets of values and ethics.